बुधवार, 1 सितंबर 2010

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सोमवार,19 जुलाई, 2010 को 08:35 तक के समाचार

भागवत: 20- सभी वेदों का सार है भागवत

Source: पं. विजयशंकर मेहता   |   Last Updated 8:35 PM [IST](19/07/2010)
 
 
 
 
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ऋग्वेदी शौनक ने पूछा- सूतजी बताएं शुकदेवजी ने परीक्षित को, गोकर्ण ने धुंधकारी को, सनकादि ने नारद को कथा किस-किस समय सुनाई ? समयकाल बताएं।
सूतजी बोले- भगवान के स्वधामगमन के बाद कलयुग के 30 वर्ष से कुछ अधिक बीतने पर भ्राद्रपद शुक्ल नवमी को शुकदेवजी ने कथा आरंभ की थी, परीक्षित के लिए। राजा परीक्षित के सुनने के बाद कलयुग के 200 वर्ष बीत जाने के बाद आषाढ़ शुक्ला नवमी से गोकर्ण ने धुंधुकारी को भागवत सुनाई थी। फिर कलयुग के 30 वर्ष और बीतने पर कार्तिक शुक्ल नवमी से सनकादि ने कथा आरंभ की थी।
सूतजी ने जो कथा शौनकादि को सुनाई वह हम सुन रहे हैं व पढ़ रहे हैं। जब शुकदेवजी परीक्षित को सुना रहे थे तब सूतजी वहां बैठे थे तथा कथा सुन रहे थे।
भागवत के विषय में प्रसिद्ध है कि यह वेद उपनिषदों के मंथन से निकला सार रूप ऐसा नवनीत है जो कि वेद और उपनिषद से भी अधिक उपयोगी है। यह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का पोषक तत्व है। इसकी कथा से न केवल जीवन का उद्धार होता है  अपितु इससे मोक्ष भी प्राप्त होता है। जो कोई भी विधिपूर्वक इस कथा को श्रद्धा से श्रवण करते हैं उन्हें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार फलों की प्राप्ति होती है।
कलयुग में तो श्रीमद्भागवत महापुराण का बड़ा महत्व माना गया है। इसी के साथ ग्रंथकार ने भागवत का महात्म्य का समापन किया है।
क्रमश:...
 
 
 
 
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