बुधवार, 6 अक्तूबर 2010

सिख सनातन

गुरु ग्रन्थ साहिब अपने नाम से ही गुरु होने का बोध करवा देते हैं | कुछ मित्र इसे बाबे की बिड ,कुछ इसे गुरु जी की देह मानते हैं |जो इसे गुरु जी की देह [शरीर ] मानते हैं उन का कहना हे की इस शरीर का हिसा [टुकडा ] कोई अलग खंड नही किया जा सकता क्यों की गुरु की यह देह प्रकट हुई है |सुखमनी साहिब ,जपुजी साहिब ,या जापुजी   साहिब इसी के अंग हें |जिस तरहा एक देह में से बाजू को अलग कर के देह नही माना जा सकता ,उसी तरहा गुरु ग्रन्थ साहिब के इन अंगों को भी देह नही माना जा सकता |जब की गुरूजी की भी आज्ञा यही हे की गुरु मान्यो ग्रन्थ यह गुरु जी की देह है और यही उन की बाणी हे उनके कहे हुए शब्द हैं |अतः गुरु ग्रन्थ साहिब पाठ की श्रेणी में नही आता यह गुरबानी कहलाता हे |सनातन सिख को किसी भी प्रकार का भेष बना सबसे अलग दिखने की भी आज्ञा गुरु ग्रन्थ साहिब नही देते |
तब प्रश्न उठता हे की क्या अमृत धारी सिख का कोई भेष नही ? तो गुरु जी ने ब्राह्मण के जनयु को भेष क्यों कहा ?
 सुखमनी साहिब

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें