रविवार, 19 सितंबर 2010
शनिवार, 18 सितंबर 2010
बुधवार, 1 सितंबर 2010
कृं कृष्णाय नम:
अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,
१ सितंबर को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर सभी जगह तैयारी चरम पर है। यह दिन भगवान का जन्मदिन मनाने का है। भगवान श्रीकृष्ण आनंद और सुख के देवता हैं। उनकी भक्ति और उपासना सुख, ऐश्वर्य, धन, सम्मान, प्रतिष्ठा और मोक्ष देने वाली मानी गई है। भाद्रपद कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता पाने के लिए खास दिन है।
यहां बताया जा रहा है भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का ऐसा सरल मंत्र जिसका श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ही नहीं बल्कि नियमित जप या उच्चारण करने पर जीवन में आ रही कष्ट और बाधाओं से छुटकारा मिलता है। कृष्ण का यह मूल मंत्र व्यक्ति के हर मनोरथ पूरे करता है और सुख दे देता है।
सभी सुख देने वाले कृष्ण के इस मूलमंत्र का जप श्रीकृष्ण जन्माष्टमी या हर रोज सुबह स्नान कर एक सौ आठ बार करें। इस छोटे मंत्र के प्रभाव से जीवन में बड़े और सुखद बदलाव आएंगे।
१ सितंबर को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मदिन पर सभी जगह तैयारी चरम पर है। यह दिन भगवान का जन्मदिन मनाने का है। भगवान श्रीकृष्ण आनंद और सुख के देवता हैं। उनकी भक्ति और उपासना सुख, ऐश्वर्य, धन, सम्मान, प्रतिष्ठा और मोक्ष देने वाली मानी गई है। भाद्रपद कृष्णपक्ष की जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण की प्रसन्नता पाने के लिए खास दिन है।
यहां बताया जा रहा है भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति का ऐसा सरल मंत्र जिसका श्रीकृष्ण जन्माष्टमी ही नहीं बल्कि नियमित जप या उच्चारण करने पर जीवन में आ रही कष्ट और बाधाओं से छुटकारा मिलता है। कृष्ण का यह मूल मंत्र व्यक्ति के हर मनोरथ पूरे करता है और सुख दे देता है।
कृं कृष्णाय नम:
सभी सुख देने वाले कृष्ण के इस मूलमंत्र का जप श्रीकृष्ण जन्माष्टमी या हर रोज सुबह स्नान कर एक सौ आठ बार करें। इस छोटे मंत्र के प्रभाव से जीवन में बड़े और सुखद बदलाव आएंगे।
दैनिक भास्कर
सोमवार,19 जुलाई, 2010 को 08:35 तक के समाचार
भागवत: 20- सभी वेदों का सार है भागवत

सूतजी बोले- भगवान के स्वधामगमन के बाद कलयुग के 30 वर्ष से कुछ अधिक बीतने पर भ्राद्रपद शुक्ल नवमी को शुकदेवजी ने कथा आरंभ की थी, परीक्षित के लिए। राजा परीक्षित के सुनने के बाद कलयुग के 200 वर्ष बीत जाने के बाद आषाढ़ शुक्ला नवमी से गोकर्ण ने धुंधुकारी को भागवत सुनाई थी। फिर कलयुग के 30 वर्ष और बीतने पर कार्तिक शुक्ल नवमी से सनकादि ने कथा आरंभ की थी।
सूतजी ने जो कथा शौनकादि को सुनाई वह हम सुन रहे हैं व पढ़ रहे हैं। जब शुकदेवजी परीक्षित को सुना रहे थे तब सूतजी वहां बैठे थे तथा कथा सुन रहे थे।
भागवत के विषय में प्रसिद्ध है कि यह वेद उपनिषदों के मंथन से निकला सार रूप ऐसा नवनीत है जो कि वेद और उपनिषद से भी अधिक उपयोगी है। यह भक्ति, ज्ञान और वैराग्य का पोषक तत्व है। इसकी कथा से न केवल जीवन का उद्धार होता है अपितु इससे मोक्ष भी प्राप्त होता है। जो कोई भी विधिपूर्वक इस कथा को श्रद्धा से श्रवण करते हैं उन्हें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन चार फलों की प्राप्ति होती है।
कलयुग में तो श्रीमद्भागवत महापुराण का बड़ा महत्व माना गया है। इसी के साथ ग्रंथकार ने भागवत का महात्म्य का समापन किया है।
क्रमश:...
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