रविवार, 27 दिसंबर 2009

गीता

मनकी शान्ति गीता ,मन की चंचलता गीता ,मन की हलचल गीता ,मन को काबू करती गीता ,मनकी तृप्ति गीता ,सभी की मार्गदर्शक गीता ,तेरी मेरी गीता ,अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,चिन्तन -मनन का साधन गीत
गीता उपदेश जीवन की धारा है। चूंकि गीता में जीवन की सच्चाई छिपी है और इसमें जीवन में आने वाली दुश्वारियों के कारण व निवारण दोनों को ही विस्तार से समझाया गया है। इसलिए गीता के उपदेश विश्व भर में प्रसिद्ध है और हर वर्ग को प्रभावित करते हैं।







उन्होंने उदाहरण देकर समझाते हुए कहा कि गीता डाक्टर की भांति है। बस फर्क इतना ही है कि डाक्टर शरीर के रोगों का इलाज करता है जबकि गीता मन के रोगों का इलाज करती है और उन्हें दूर करने का मार्ग दिखाती है। जिस प्रकार डाक्टर रोगी को रोग के निवारण के साथ-साथ उसके कारण भी बताता है। ठीक उसी प्रकार से गीता का अगर गहनता से अध्ययन किया जाए तो इससे मन के रोगों का कारण और निवारण दोनों का पता चल जाता है।






गीता मन के रोगों को दूर करने का एक सशक्त माध्यम है। गीता ज्ञान से मानव जीवन में मोह को भी आसानी से दूर किया जा सकता है। मोह जीवन लीला को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है। जीवन में दुखों का सबसे बडा कारण मोह ही है। जीवन को अगर सफल बनाना है और मोह से मुक्ति पानी है तो गीता की शरण में जाना पडेगा। गीता से ज्ञान पाकर मानव मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।






गीता का ज्ञान मनुष्य को उसकी आत्मा के अमर होने के विषय में बोध करवा कर अपने कर्तव्य कर्म को पूर्ण निष्ठा से करने को प्रेरित करता है। भगवान ने मनुष्य को देह केवल भोग के लिए प्रदान नहीं की है अपितु हमें इसका उपयोग मोक्ष प्राप्ति के लिए करना चाहिए। इसके लिए हमें भजन, सत्संग, समाज सेवा व जन कल्याण के कार्य करने चाहिए।






उन्होंने कहा कि साधु व नदी कभी एक स्थान पर नहीं रुकते और निरंतर आगे बढते हुए विभिन्न स्थानों पर जन-जन के हृदयों में अपने ज्ञान व भक्ति के प्रभाव से उन्हें लाभान्वित व आनंदित करते हैं। प्रत्येक मानव को पूरी श्रद्धा व निष्ठा से परोपकार के लिए तैयार रहना चाहिए और अपने ज्ञान से जगत को प्रकाशमान करने का प्रयास करते रहना चाहिए, असल में यही मानव धर्म है।

गुरुवार, 24 दिसंबर 2009

मनकी शान्ति गीता ,मन की चंचलता गीता ,मन की हलचल गीता ,मन को काबू करती गीता ,मनकी तृप्ति गीता ,सभी की मार्गदर्शक गीता ,तेरी मेरी गीता ,अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,चिन्तन -मनन का साधन गीता

हादसों और त्रासदियों से गुजरते हुए अनुभवों से हम यह जो पहले दिन का सूर्य देख रहे हैं, वह पहले जैसा नहीं है। कुछ नया कह रहा है, कुछ नया पूछ रहा है। सियासतगर्दी और दहशतगर्दी के वार से लहूलुहान जख्म लेकर हमने जो जश्नों से हट कर प्रश्नों से मुकाबला करने की बातें तय की थीं, साल का प्रारंभ उन्हीं सवालों को लेकर खड़ा है। लेकिन नागरिकों के कब्र पर नेता अपने जन्मोत्सव की तैयारियों में मशगूल हैं और हम नया साल मुबारक का मर्सिया पढ़ने में...मशगूल                             सुना देर रात कि लोग नए साल के आगमन का जश्न मनाने सड़कों पर निकल आए हैं... साफ दिखा सत्ता अलमबरदारों के पाप का संताप कम करने के लिए आम आदमी 'जश्न’ की घातक नशीली दवा का लती हो चुका है। पूरी तरह बेहोश... होश दुखदायी असलियत की पीड़ा जो देता है।
कभी नशे में आने, कभी उससे पार पाने की कोशिशों और चिल्लपों से दूर एकांत की तलाश में यूं ही अचानक देर रात गोमती नदी के किनारे मायावती की मूर्ति के पायताने एकांत में गुमसुम बैठे लखनऊ से मुलाकात हो गई। थका हारा निढाल सा लखनऊ का सूक्ष्म शरीर गोमती के इर्द गिर्द बिखरे निर्मम पत्थरों से तय हो रही विकास यात्रा का सच पढ़ने की शायद कोशिश में था। उसी लखनऊ की आत्मा से रात की मुलाकात एक अलग विचार-लोक में ले जाती है। सुख और गौरव के संस्मरणों में भोगे जा रहे वर्तमान की पीड़ा के अजीबोगरीब व्यथा-संसार में। कब सुबह हो गई! कब नया साल आ गया! कब लखनऊ का सूक्ष्म शरीर स्थूल में जा मिला! कब सारा दृश्य एक बार फिर भाव से भौतिक हो गया, पता ही नहीं चला।
बात करने को राजी ही नहीं थे। कई सारे सवाल एक साथ ही पूछ डाले। नए साल का जश्न मनाने वाली भीड़ का तुम हिस्सा तो नहीं? कोई नेतातो नहीं? कोई अपराधी या अधिकारी तो नहीं? फिर रात में गोमती बंधे पर क्यों फिर रहे? ताबड़तोड़ कई सवाल। सूक्ष्म शरीर से स्थूल सवालों की बौछार? इस पर लखनऊ ढीले पड़े। आंखों के भाव बदले। पितृ-भाव से परखा फिर बड़े स्नेह से बगल में बिठाया। इस बार मेरे बिना पूछे ही बोल पड़े, जैसे स्वगत। ...दूर वह श्मशान निहार रहा था... कैसे कैसे श्मशान का विस्तार पूरे शहर पर पसर गया... चौराहों-चौबारों पर लाशें सजने लगीं... कैसा फर्क आया कि पुरखों का सम्मान और अनुसरण करने के बजाय उनकी लाशों की प्रतिकृतियों से हम खूबसूरत पृथ्वी को ढांकने लगे... समाधियों और स्मारक के विस्तार को हम सामाजिक विकास का मानक मानने लगे... जब मुरदे हमारे प्रतीक चिन्ह बन जाएंगे तो जीवन कहां रह जाएगा... इसीलिए तो हमारे प्राण संकट में फंस गए... मैं खुद इसका भुक्तभोगी हूं।लखनऊ के भाव तीखे होते चले गए। कहने लगे। ...समाज का उत्थान मकबरों से शुरू होता देखा है कभी? जीवन के अंत का प्रतीक चिन्ह समाज के जिंदा होने का प्रतीक बन जाए तो क्या होगा? इसीलिए तो भीड़ इतनी निस्तेज दिखती है... कभी सोचा है? लखनऊ खुद बोल पड़ते हैं... सोचा होता तो न इस देश की दुर्दशा हुई होती न मेरी... अंधेरा और स्याह दिखने लगा था। वयोवृद्ध लखनऊ की सांसें तेज होने लगी थीं। भावुकता के ज्वार फूटने लगे थे। वे बुदबुदा रहे थे... शायद हम सबसे ही कह रहे थे...
जब धरा पर धांधली करने लगे पागल अंधेरा/और अमावस धौंस देकर चाट ले सारा सवेरा/तब तुम्हारा हार कर यूं बैठ जाना बुजदिली है पाप है/आज की इन पीढि.यों को बस यही संताप है/अब भी समय है आग को अपनी जलाओ/बाट मत देखो सुबह की प्राण का दीपक जलाओ/मत करो परवाह कोई क्या कहेगा/इस तरह तो वक्त का दुश्मन सदा निर्भय रहेगा/सब्र का यह बांध तुमने पूछ कर किससे बनाया/कौन है जिसने तुम्हें इतना सहन करना सिखाया/तोड़ दो यह बांध बहने दो नदी को/दांव पर खुद को लगा कर धन्य कर दो इस सदी को/मैं समय पर कह रहा हूं और अब क्या शेष है/तुम निरंतर बुझ रहे हो बस इसी का क्लेश है/जो दिया बुझ कर पड़ा हो वह भला किस काम का/यह समय बिल्कुल नहीं है ज्योति के आराम का/आज यदि तुमने अंधेरे से लड़ाई छोड़ दी/तो समझ लो रौशनी की चूड़ियां घर में बिठा कर तोड़ दी...
                                          लखनऊ की आंखों के कोर भींगने लगे थे। मैं उसमें डूबता चला गया। वे कब चले गए और मैं कब ठहर गया, पता ही नहीं चला। तंद्रा अब तक टूटी नहीं है। लखनऊ की आत्मा के स्वर अब भी गूंज रहे हैं। मन तिक्त हो उठा है। कैसे कहें नया साल मुबारक...!

शनिवार, 5 दिसंबर 2009

जबलपुर हाईकोर्ट के आदेश के पालन में घमापुर-शीतलामाई मार्ग के अतिक्रमणों पर युद्धस्तरीय कार्रवाई जारी है। मंदिर के ट्रस्टी डॉ. रमाकांत रावत का कहना है कि यदि ठीक से नपाई की जाती तो ये स्थिति कतई न बनती। ऐसा इसलिए क्योंकि मंदिर बकायदे राजपत्र में प्रकाशित है। सरकारी रिकॉर्ड में इसका अस्तित्व 1944 से मिलता है लेकिन दरअसल, ये मंदिर अति प्राचीन है। यह पुरातात्विक महत्व का एशिया का संभवतः एकमात्र विशालतम शीतलामाई मंदिर है। इसके नाम एक वार्ड जाना जाता है।
सौ वर्षों में पहली बार मालवा अंचल में 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' के उद्देश्य से हो रहे कोटिरूद्र महायज्ञ के लिए साँवेर रोड धरमपुरी स्थित विश्वनाथधाम सज-सँवरकर तैयार है। यहाँ 6 से 31 दिसंबर तक हथियाराम मठ बनारस के वरिष्ठ महामंडलेश्वर स्वामी बालकृष्ण यतिजी के सान्निध्य में देशभर के 330 चुनिंदा विद्वान आचार्य 3 करोड़ रूद्रपाठ के साथ भगवान काशी विश्वनाथ का रूद्राभिषेक करेंगे।




अनुष्ठान के लिए 18 एकड़ भूमि पर यज्ञशाला व प्रवचन पांडाल तथा 21 सौ फुट वर्गाकार व 60 फुट चौड़ा परिक्रमा मार्ग बनाया गया है।




महायज्ञ का शुभारंभ 6 दिसंबर को सुबह 9.15 बजे होगा। यह दो चरणों में होगा। 6 से 31 दिसंबर तक प्रतिदिन सुबह 9 से दोपहर 1 बजे व दोपहर 2 से शाम 6 बजे तक होने वाले अभिषेकात्मक यज्ञ में एक प्रधान यजमान और 11 यजमान काशी विश्वनाथ का रूद्राभिषेक करेंगे। इस दौरान प्रतिदिन गौदुग्ध की अखंडधारा से मुख्य यजमान द्वारा दुग्धाभिषेक भी किया जाएगा।



यह अनुष्ठान बनारस के राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त यज्ञाचार्य पं.लक्ष्मीकांत दीक्षित के निर्देशन में होगा। इसके बाद 1 से 11 जनवरी तक हवनात्मक यज्ञ के तहत 150 यजमान 25 कुण्डों पर विद्वान ब्राह्मणों के निर्देशन में कोटिरूद्र महायज्ञ संपन्न करेंगे। इसकी शुरुआत 1 जनवरी को ऐतिहासिक शोभायात्रा के साथ होगी। 1 जनवरी से वृंदावन के प्रख्यात रासाचार्य पद्मश्री स्वामी रामस्वरूपजी शर्मा के निर्देशन में रासलीला और 2 जनवरी से राजकोट की प्रख्यात भागवत मर्मज्ञ मीराबेन के सान्निध्य में भागवत कथा होगी। जिसका आयोजन दोपहर 2 बजे से होगा।
                                                         बापरे  बाप जरा विचार तो करलें क्या यह  महा यग्य अश्व मेघ यग्य से भी बड़ा हें |जब अश्वमेघ यग्य सम्पूर्ण नही हो सका तो इस की क्या गारंटी है?
क्या विद्वानों को और कोई साधन सभी के हित के लिए नही सोचना चाहिए था?

संत तरुण सागर जी महाराज

प्रख्यात जैन संत तरूण सागर ने कहा है कि धर्मग्रंथ गीता किसी एक धर्म की जागीर नहीं है और न ही उस पर हिंदुओं का एकाधिकार है। मुनिश्री तरूण सागर ने पत्रकारों से बातचीत में कल रायपुर में यह उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि गीता में कहीं भी हिंदू का उल्लेख नहीं है। गीता पर सबका अधिकार है।




उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द को जरूरी बताते हुए कहा कि हिंदू और मुसलमान देश की दो आँखें हैं। भारत में सांप्रदायिकता मुल्क के हिसाब से नहीं है। रमजान लिखते हैं तो राम से शुरुआत करते हैं दिवाली लिखते हैं अली से खत्म करते हैं।



उन्होंने कहा सत्ता और भ्रष्टाचार का करीबी रिश्ता है। सत्ता और राजनीति को काजल की कोठरी करार देते हुए कहा कि इस पर अगर कोई घुसे और बेदाग निकल जाए यह संभव नहीं है, लेकिन जो बेदाग निकलते हैं उन्हें प्रणाम करना चाहिए। राजनीति में जो ईमानदार लोग भी हैं उनमें साहस नहीं है। ईमानदारी के साथ-साथ साहसी भी होना जरूरी है, बुराइयों के खिलाफ लड़ने का साहस होना चाहिए।






जीवन जीने के दो तरीके बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि पहला जो चल रहा है उसके साथ चलना। दूसरा जो हो रहा है उसके विपरीत चलना। प्रवाह के विरोध के लिए ऊर्जा चाहिए। गंगोत्री की गंगासागर से यात्रा मुर्दा भी कर लेता है, लेकिन गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा करने के लिए साहस चाहिए। प्रवाह के विरुद्ध बहने के लिए साहस जरूरी है। सामाजिक-वैश्विक समस्याओं से निपटने के लिए साहस चाहिए।



जैन सन्त ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि आज देश में गाय धर्मनीति और राजनीति के बीच पीस रही है। जब तक इन्हें इन बँधनों से मुक्त नहीं करेंगे गौरक्षा असंभव है। गौरक्षा को धर्मनीति और राजनीति से निकालकर अर्थनीति से जोड़ना होगा तभी गौरक्षा आंदोलन सफल होगा। उन्होंने एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा कि जैन धर्म के सिद्धांत दुनिया को सुधारने के लिए उपयोगी है अच्छे हैं, लेकिन उसकी मार्केटिंग नहीं हो पा रही है इसलिए पिछड़ रहा है।



धर्म और राजनीति के संबंध में उन्होंने कहा कि धर्म गुरु है और राजनीति शिष्य। राजनीति अगर गुरु के समक्ष आती है तो यह समस्या खड़ी हो जाती है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के संबंध में पूछे गए सवाल पर संतश्री ने कहा कि वहाँ हजारों लाखों लोगों की आस्था टिकी हुई है इसलिए कानून के दायरे में रहकर मंदिर निर्माण का काम होना चाहिए। धर्म को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म परिवर्तन का नाम है। यह बेचने-खरीदने की चीज नहीं है। धर्म जीने की चीज है प्रदर्शन का नहीं।

सोमवार, 30 नवंबर 2009

संदेश मेरे लिए देखें आप सभी

- श्री भगवान को प्रेम से जगाओ आपका भाग्य जागेगा।


- श्री भगवान को स्नान कराओ तो आपके सब पाप धुल जाएँगे।

- श्री भगवान को चरणामृत प्रेम से पान कराओ आपकी मनोवृत्ति बदल जाएगी।



- श्री भगवान को तिलक लगाओ आपको सर्वत्र सम्मान मिलेगा।

- श्री भगवान के चरणों का तिलक स्वयं भी लगाओ आपका मन शां‍त होगा।

- श्री भगवान को भोग लगाओ आपको संसार के सभी भोग मिलेंगे।



- श्री भगवान का प्रसाद स्वयं भी पाओ, आप निष्‍पाप हो जाओगे।

- श्री भगवान के सम्मुख दीप जलाओ आपका जीवन प्रकाशवान होगा।

- श्री भगवान को धूप लगाओ आपके दुख के बादल स्वत: छट जाएँगे।



- श्री भगवान को पुष्प अर्पित करो आपके जीवन की बगिया महकेगी।

- श्री भगवान का भजन-पाठ करो आपका यश बढ़ेगा।

- श्री भगवान को प्रणाम करो संसार आपके आगे झुकेगा।



- श्री भगवान के आगे घंटनाद करो आपकी दुष्प्रवृत्तियाँ दूर होंगी।

- श्री भगवान के आगे शंखनाद करो आपकी काया निरोगी रहेगी।

- श्री भगवान को प्रेम से शयन कराओ आपको चैन की नींद आएगी।



- श्री भगवान के दर्शन करने नित्य मंदिर जाओ आपके दुख में प्रभु दौड़े चले आएँगे।

- श्री भगवान को अर्पण कर ही वस्तु का उपभोग करो आपको परमानंद मिलेगा।

- श्री भगवान को लाड़-प्यार से खिलाओ संसार आप पर रिझेगा।



- श्री भगवान से ही माँगो जो चाहोगे वो आपको मिलेगा। (अन्य से नहीं)

- श्री भगवान का प्रसाद मान सुख-दुख भोगो आप सदा सुखी रहेंगे।

- श्री भगवान का ध्यान करो प्रभु अंत समय तक आपका ध्यान रखेंगे।

सौजन्य से - श्री रामभक्त हनुमान मंदिर

अधुरा मन्दिर



क्या आपने ऐसा कोई प्राचीन अधूरा मंदिर देखा है जिसकी छत न हो और जिसमें किसी देवता की मूर्ति भी स्थापित न की गई हो। यदि नहीं तो आओ चलते हैं एक ऐसे ही मंदिर में।




इस मंदिर के बारे में कई तरह की किंवदंतियाँ है। जिनमें से दो किंवदंतियाँ ज्यादा प्रचलित है। इस मंदिर की दास्तान जुड़ी हुई है नेमावर के सिद्धनाथ मंदिर से। एक बार की बात है नेमावर के सिद्धेश्वर क्षेत्र में कौरव और पांडवों का रुकना हुआ।



एक शाम कुंती ने देखा की कौरवों ने इस क्षेत्र में एक भव्य मंदिर बनाया है तब उन्होंने पांडवों से कहा कि तुम भी इसी तरह का एक भव्य मंदिर बनाओ जिससे कौरवों के समक्ष हमारी प्रतिष्ठा बनी रहे और तुम्हारे पास इसे बनाने के लिए सिर्फ एक रात ही बची है।



उसी शाम कौरवों ने पांडवों से कहा की हमने इस क्षेत्र में एक मंदिर बनाया है। पांडवों ने कहा कि हमने भी इस क्षेत्र में एक मंदिर बनाया है। कौरवों ने कहा कि हमने तो आपको बनाते हुए देखा नहीं और यदि बनाया भी है तो हम पहले ही बता दे कि हमारा मंदिर पूर्वमुखी है और आपका?





NDपांडवों ने कहा कि हमारा पश्चिममुखी मंदिर है। इस पर कौरवों ने कहा कि ठीक है। तब तो हम कल सवेरे आपका मंदिर देखने चलेंगे।



पांडवों को अब यह चिंता सताने लगी कि आखिर रात भर में मंदिर कैसे बन पाएगा जबकि हमने कौरवों से झूठ कहा था कि हमने भी मंदिर बनाया है। ऐसे में भीम ने कहा कि आप चिंता न करें। भीम ने कुंती को वचन दिया की मैं रात भर में आपके कहे अनुसार मंदिर बना दूँगा।



रात्रि में भीम ने कौरवों के बनाए मंदिर के पास स्थित पहाड़ी पर मंदिर बनाने का कार्य आरंभ किया। लेकिन अर्ध रात्रि से ऊपर बीत जाने पर भी वह मंदिर नहीं बना पाए, तब उक्त मंदिर को अधूरा ही छोड़कर भीम ने जहाँ कौरवों ने मंदिर बनाया था उस उक्त पूर्वाभिमुखी मंदिर को घुमाते हुए पश्चिममुखी कर दिया।



दूसरी कहानी इस तरह की है कि कुंती ने भीम से कहा कि मेरे लिए एक रात में एक मंदिर बनाओ। यदि एक ही रात में नहीं बनता है तो हम यह स्थान छोड़ देंगे। भीम के लाख प्रयास के बाद भी जब मंदिर पर छत लगाने का काम शुरू किया तब भौर हो चुकी थी ऐसे में भीम ने मंदिर को बनाना छोड़ दिया। वचनानुसार ‍पांडवों ने कुंतीसहित उक्त स्थान को छोड़ दिया।

शनिवार, 28 नवंबर 2009

gita ki booli: श्री श्री श्रीमद -भागवत -गीता

gita ki booli: श्री श्री श्रीमद -भागवत -गीता

ajb teri maya



jagrn ,अजूबा बना जिराफ, कर रहा योगवाशिंगटन, एजेंसी : सीधी और लंबी गर्दन जिराफ की खासियत है। अपनी लंबी गर्दन के कारण ही जिराफ का खाना-पीना हो पाता है। पर ओहियो के टुलसा चिडि़याघर में पल रहा एक जिराफ इन दिनों दर्शकों के कौतूहल का केंद्र बना हुआ है। एमली नाम की इस मादा जिराफ की गर्दन सीधी न होकर हुक की तरह मुड़ी हुई है। इसके बावजूद वह आराम से खाना खा लेती है। ऐसे में वह आम लोगों के लिए अजूबा बनी हुई है। चिडि़याघर के कर्मचारियों का कहना है कि गर्दन मुड़ी होने के बावजूद 11 फुट लंबी एमली सामान्य है। हालांकि डाक्टर उसकी गर्दन सीधी करने की कोशिश भी कर रहे हैं। यहां तक कि उसे योग का अभ्यास भी कराया जा रहा है। जिराफ की गर्दन की हड्डियां काफी मजबूत और सीधी होती हैं। इस कारण ये ऊंचे पेड़ों से अपना भोजन लेने में सक्षम होते हैं। लेकिन पांच साल की एमली के मामले में ऐसा नहीं है। इसलिए वह डाक्टरों के लिए भी शोध का विषय बनी हुई है। डाक्टर यह पता लगा रहे हैं कि एमली में इस विकृति का क्या कारण है। वे यह भी शोध कर रहे हैं कि विकृति के बावजूद एमली आम जिराफ की तरह ही कैसे खा-पी लेती है। एमली का उपचार कर रहे डा. बैकस ने कहा कि गर्दन में खिंचाव आने पर मनुष्य योग का सहारा लेते हैं। उसी तरह एमली की गर्दन सीधी करने के लिए योग का सहारा लिया जा रहा है। उसे दर्द निवारक दवाएं भी दी जा रही हैं। चिडि़याघर के निदेशक ने कहा कि एमली का अर्थ होता है होप यानी उम्मीद। हमें भी उसकी गर्दन ठीक हो जाने की उम्मीद है।

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

भुत


प्रेत जिन पिशाच का सनातन धर्म से सम्बन्ध?
सनातन धर्म में भूतों का विशेष महत्व हे |गीता शास्त्र में भगवान क्ह्तेहे की बहुत प्रेत पिशाच जिन की हम बुरी या भली आत्मा के रूप में कल्पना करते हें ओर समाज में इन का
वर्चस्व भी देखा करते हें |वास्तव में वही आत्मा परमात्मा होती हे |परमात्मा का कहना हे की तुम मेरी ओर एक कदम चलो में तुम्हारी ओर चार कदम बडूगा |जब हम उस परमात्मा का चिन्तन खुदा यशु अकाल्पुर्ख या भूत प्रेत जिन पिशाच आदि के रूप में करते हैं तब परमात्मा उसी रूप में चार कदम हमारी ओर बड़ता हे , भगवान कृष्ण ने मिटटी खा कर माता के कहने पर अपना मुह खोल कर दिखाया तब माता को उन के मुह में बह्मांड नजर आया था |माता उन को पहिचान नही सकीं और उन पर किसी बला का साया समझ बैठीं |यदि यह उन को ब्रह्मांड का स्वामी मान लेतीं तो उन को तभी पता चल जाता की कृष्ण उन का पुत्र नही भगवान हेँ |इस के बाद श्री कृष्ण की लीलाएं किसी भूत प्रेत से कम नही थीं |हमारे शस्त्रों ने तो यहाँ तक कहा हे कि जेसा स्वरूप हम अपने मष्तिष्क में बनाते हेँ भगवान उसी रूप के हो जाते हैं |सागर का जल सागर नदी का जल नदी गिलास कटोरी का जल वैसा ही रूप धारण कर लेता हे भगवान भी जिस रूप में खोजे जाते है उसी रूप के होकर वैसे ही कर्म करने लगते हैं |अर्जुन भी भगवान का विराट रूप देख कर भयभीत हो उनसे शांत स्वरूप में दर्शन देने का आग्रह करते हैं |अतः प्रमाणित होता हे कि सदा शांत स्वरूप ही पूजने के योग्य होता हे |क्रोधित स्वरूपों की कल्पना मात्र क्रोध उत्पन कर उत्पात उत्पन करती हें |क्या यह खोज का वेज्ञानिक विषय नही हो सकता ?या ओझा तांत्रिकों का विषय अथवा दिमाग के डाक्टरों की कमाई का विषय मात्र इस लिए हो गया की सनातन धर्म को हम भूल गये हैं ?सनातन के मूल सिधान्तों का अनुसरण न करने से भूत प्रेत जिन के चक्र में दुखी होना स्वभाविक ही है |यदि हम देवता ही मान कर चलें तो भी देवता लोग किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाते
    (सनातन धर्म बेशक पुराना है पर प्रयोग नया है )

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2009

सनातन की नरमाई चारों धर्मो में कमी लाइ

 हर इन्सान की रक्षक गीता ,
                                                     आज कल होड़ लगी हुई हे की किस का धर्म बडा हे कोनसा धर्म सचा हे मेरा तेरा या उसका ?
                    गीता शास्त्र ने तो साफ़-साफ़ कहा हे की यदि तुझे लगे कि दुसरे का धर्म तुझ से अछा हे तो भी अपने जन्म वाले धर्म को कभी भी ना त्यागना ,अपने स्वधर्म को ना त्यागना उसी स्वधर्म के कर्म को करता जा तू मोक्ष को प्राप्त हो जाए गा |
                              प्रभु कि इस आज्ञा के बाद छोटे-बडे का प्रश्न ही नही उठता ,फिरभी सनातन धर्म के चारों अंग हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई अपने-अपने धर्म को बडा चड़ा कर एक दुसरे का अपमान करने पर तुले हुए हैं |
                       हिन्दू मुस्लिम सिख इसाई आपसमे भाई-भाई क्यों कि यह चारों ही सनातन धर्म के अंग हें |इन चारों धर्मों को निर्देश देने वाला एक वही सनातन पुरुष परमात्मा ही हे |ऐसा इस लिए भी कह सकते हें कि इन चारों धर्मों को उस परमात्मा ने एक जेसी ही आज्ञा दे रखी ही |जिसमे प्रमुख आगया तो यही हे कि मुझे अर्थात ईश्वर के अतिरिक्त और किसी को सताधारी मत माना |
सदा मुझमे ध्यान लगाना ,निदा चोरी -चकारी ,व्यभिचारी , अपराध(पाप कर्म)से बचना पडोसी से बना कर रखना ,ध्यान रखना तेरे आस-पास रहने वाला कोई भूखा ना रह जाए दुखिये कि यथा योग्य मदद करना
                        हाँ कभी कोई भेष ऐसा मत बनाना कि तेरी पहिचान हो कि तू अमुक समुदाय से हे एक दम सरल सादा भेष हो तेरा कोई विशेष भेष धारण करने कि कोई जरूरत नही |
             आज चारों धर्म चाहे हिन्दू हो या मुसलमान सिख हो या इसाई उस ईश्वर कि इन आज्ञाओं का पालन करने में हीच-किचाता हे |जो इन या ऐसी ही और प्रभु आज्ञाओं का पालन करताहे वही फकीर कहलाता है |फकीर इन चारों धर्मों में आज भी पाया जाता हे |
                       फकीर ही परमात्मा कि आँख का तारा होता है |बाकी मुझे तो कोई भी धर्म जिस का पतन ना हो रहा हो नजर नही आरहा |आइये अब लोट चलें अपने उसी पुराने सनातन धर्म कि ओर उसके बनाये नियमों कि ओर अभी भी वक्त हे सुबहा के भूले को भुला नही कहते |
सनातन पुरुष का गुण-गान हो अपने अपने धर्मानुसार परमात्मा की पूजा हो घंटी घडियाल बजाने नमाज पड़ने गुरबानी पड़ने ओर प्रार्थनाओं का असर तभी दिखाई देगा जब सनातन धर्म में रहते हुए सनातन नियमों का पालन होगा
\             नही तो विचार करलो चारों धर्मों ने विश्व शान्ति के लिए पाठ पूजा की परन्तु हर प्रयास असफल रहा |सनातन वृक्ष की जड़ को सींचने की जरूरत हे आज सनातन वृक्ष पुन्हा हरा-भरा हो जाए गा |प्रयास तो कर के देखो |

उधेड़-बुन: करवा चौथ


अंधे की आँख गीता ,
                बदलते जमाने ने बदल दिए
                             दिन त्यौहार
                  विरोध करने वाला खाता मार

करवा चोथ का व्रत

मनकी शान्ति गीता ,
                                   करवा चोथ की सभी को बिधाई बहुत ही कठिन व्रत होता हे अन जल कुछ भी ना ग्रहण कर सुहागिने पीटीआई की लम्बी आयु की कामना करतीं हैं |बेचारे पति देव का हाल तो देखो पत्नी पानी तक नही पीती पर व्रत के नाम पर पति देव के हजारों खर्च हो जाते हें |
                             एक पत्नी ने करवा चोथ का व्रत रखा रातको व्रत खोलना था पति से पत्नी ने कहा  रातको खाने के लिए कुछ मिठाइयां और केले लेते आना पत्नी व्रता बाजार से सारा सामान ले आया रात को चाँद निकला ,व्रत तोड़ने की तयारी हुई |पत्नी ने डट कर सारे दिन की भूख मिटाई |
         थोडी देर के बाद पत्नी के पेट  में जोरों की दर्द होनी शुरू हो गयी पति परेशान सारे घरेलू उपचार कर लिए दर्द नही रुका पति पडोसी के घर से पेट दर्द की टिकिया ले आया |पानी गर्म कर पत्नी से बोला लो यह टिकिया खालो पेट दर्द रुक जावे गा |
           पत्नी ने पति को डांट लगाते हुए कहा अगर पेट में टिकिया की जगहा बची होती तो क्या में एक केला और ना खा लेती
                               

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2009

aaj se

orkut pr aaj se yh blog dekh skte hen

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

गुरुवार, 17 सितंबर 2009

शुक्रवार, 21 अगस्त 2009

वर्ण अनुसार स्वभाविक कर्म

हर इन्सान की रक्षक गीता
सात्विक गुण की प्रधानता ब्राह्मणों में हे जिनकी वंशावली की परम्परा परम शुद्ध हे ,जिनके पूर्व जन्म के कर्म भी शुद्ध हें ऐसे ब्राह्मणों के लिए ही शम-दमआ दी गुण स्वाभाविक होते हें यदि किसी में कोई गुण कम हो तो या हो ही नही तो भी ब्राह्मण के लिए इनको प्राप्त करने में किसी प्रकार का कष्ट नही होता वह स्वभाविक तोर पर प्रकट होने लगते हें
चारों वर्णों की रचना उन के स्वाभाविक गुणों के अनुसार ही की गई प्रतीत होती हे गुणों के अनुसार उस -उस वर्ण उनके स्वाभाविक कर्म स्वभाविक रूप में प्रकट हो जाते हें और दुसरे कर्म गोन हो जाते हें जेसे किसी भी मन्दिर में या धार्मिक सत्संगों में हर प्रकार के वर्णों को उनके कर्मों के अनुसार पहिचाना जा सकता हे जेसे इस प्रकार की जगह पर ब्राह्मण प्र्मत्माके तत्व का अनुभव करना चाहेगा शास्त्रों का अध्ययन -अध्यापन स्वाभाविक रूप में करना चाहता हे और किसी के साथ अन्याय होता देख जिस का खून खोळ उठता हे वह क्षत्रिय होता हे यदि ऐसी जगह कोई वेश्य हो गा तो वह अपने जीवन में कितनी भी डंडी मरता रहाहो ,यहाँ सचा व्योपार ही करना चाहता हे तथा शुद्र वर्ण का मनुष्य सब से अधिक सेवा भावना वाला दिखाई देता हे (यदि आप के आस-पास आप ने कभी इस प्रकार का कोई शोध कार्य किया हो तो अपने -अपने अनुभव को टिपणी द्बारा सांझा अवश्य करें -----------------------------आप का आभारी रहुगा ---------धन्यवाद )

बुधवार, 19 अगस्त 2009

अपने धर्म को देखो

यदि मनुष्य अपने ब्राह्मण -क्षत्रिय -वेश्य -और शुद्र के धर्म ,जिस धर्म में भगवान ने मनुष्य का जन्म रूपी पोधा लगा दिया हे के कर्मों कोही यदि कर ले तो इस से बडा और कोई धर्म युक्त युद्घ हो ही नही सकता और न ही कोई और दूसरा कल्याण को देने वाला कर्तव्य ही उस के लिए शेष रह जाता हे हे -पार्थ अपने आप परमात्मा द्वारा प्राप्त इस धर्म चाहे वो हिंदू का हो मुलिम सिख या इसाई का हो चाहे ब्राह्मण हो या क्षत्रिय हो -वेश्य हो या शुद्र ही क्यो न हो इस प्रकार जो प्रभु इछा से प्राप्त धर्म ही स्वर्ग दिलाने वाला होता हे ,इस प्रकार के युद्घ को भाग्यवानलोग ही प्राप्त करते हें
जो लोग धर्म युक्त युद्घ को नही करते वह उस इश्वर के घर स्वधर्म और कीर्ति दोनों कोही खो कर पाप को ही प्राप्त हुआ करता हे तथा लोगों द्वारा बहुत काल तक रहने वाली अपकीर्ति आ भी कथन करते हें और माननीय पुरुषों के लिए अपकीर्ति मरण से भी बड़कर होती हे
(यहाँ आप सभी के सहयोग की हम सभी को आवश्यकता हे अतः आप की प्रति-क्रिया की जरूरत हे -------क्या ऐसे महा -परुष आप या आप के आसपास नही हें ? जो अपने उस धर्म को त्याग कर किसी दुसरे के स्वाभाविक -कर्म को अपना चुके हे ?उन को अपने धर्म के लोगों से अपमानित नही होना पड़ता?मेरे एक मित्र का जन्म शुद्र वर्ण में हुआ हे उसके कई रिश्ते दार ऊची-ऊँची प्रसासनिक सेवाओं में अधिकारी के रूप में कार्यरत हें परन्तु अब वह लोग अपने कुल के लोगों से बात करना या उन के दुःख सुख में में साथ देना अपनी तोहीन क्यों समझते हें ? क्या उनको इसी प्रकार की शिक्षा कभी दी गई थी? या उच्च शिक्षा में उन्हों ने ऐसी शिक्षा प्राप्त की थी? जवाब होगा नही फ़िर क्या यह साबित नही होता की हमारी शिक्षा प्रणाली अन्पड-मूर्खों को उच्च पदों पर आसीन कर रही हे?) ऐसे लोगों के रिश्ते दार इनको अपने कुल धर्म -जाती धर्म के धर्म युद्घ से हटा हुआ क्युओं नही मानेगे ? वेरी लोग भी क्या ऐसों के सामर्थ की निंदा करते हुए न करने योग्य बातें नही करते ? फ़िर इससे अधिक दुःख और क्या हो सकता हे ? इसी बात को भगवान अर्जुन को भी कह रहे हें या तो तू इस युद्घ में मारा जा कर स्वर्ग को प्राप्त हो गा या संग्राम जित कर पृथ्वी का राज्य भोगे गा जये-पराजय ,लाभ -हानि ,सुख-दुःख को समान जान कर ,उसके बाद अपने कर्म रूपी युद्घ के लिए तयार होजा इस प्रकार के युद्घ को करने से तुझे पाप भी नही लगे गा

मंगलवार, 11 अगस्त 2009

यह आत्मा

यह आत्मा अव्यक्त हे, यह आत्मा अचिन्त्य और विकार रहित हे अगर इस प्रकार से ही आत्मा को जाना जावे तोभी शोक करना उचित नही हेकिंतु अगर तू आत्मा को सदा जन्म लेने वाली मन कर चलता हे ,तोभी तुझे शोक करना उचित नही हे क्यों की इस मान्यता के अनुसार जन्मे की मृत्यु निश्चित हे फ़िर बे सिर-पैर की बातों का शोक केसा ? हे अर्जुन जन्म से पहले सभी प्राणी आदृश्य थे ,मरने के बाद भी आदृश्य होजाएंगे फ़िर शोक किस बात का ?कोई एक महा पुरुषही इस आत्मा को आश्चर्य की भांति देखता हे और दूसरा इस के तत्व का आश्चर्य से वर्णन करता हे दूसरा जो इसे जानने का असली अधिकारी पुरूष भी इसे आश्चर्य की भांति सुनता हे की ऐसे भी होते हें जिन के पले कुछ भी नही पड़ता
हे अर्जुन यह आत्मा सभी के शरीर में सदा ही रहती हे और यह किसी के द्वारा मरी भी नही जा सकती इस कारण से भी सभी प्राणियों <हाथी-जानवर-मनुष्य-वगेरा-वगेरा >के लिए भी शोक करना नही बनता और अपने क्षत्रिय धर्म को मान कर भी भयभीत होना भी शोभा नही देता क्यों की क्षत्रिय के लिए {ब्रह्मिणको पठन -पाठन वेश्य को उद्योग व्योपार ,और शुद्र को सेवा }धर्म-युक्त कर्म से बडा कल्याण कारी कर्तव्य और क्या हो सकता हे ?


































सोमवार, 10 अगस्त 2009

तत्व ------ज्ञान

झूठ के पांव नही होते सत्य की कोई काट नही होती एक झूठ को सचा साबित करने के लिए छतीस -प्रकार के झूठों का सहारा लेना पड़ता हे सत्य को साबित करने के लिए किसी प्रपंच की जरूरत नही होती इसी प्रकर या सिधांत का अनुसरण तत्व ज्ञानी पुरुषों द्वारा किया जाता हे --------------------------------------------------{१}...........नाश रहित , जिस का किसी भी कल में नाश नही होता --------जिस के द्वारा यह सम्पूर्ण संसार दिखाई देता हे इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नही हे ........जेसे इस शरीर में रहने वाली आत्मा का नाश नही होता परन्तु चोरासी लाख योनियों का नाश हो ता देखने वाली यह आत्मा अविनाशी हे इसका कभी भी नाश नही होता हे और इन्ही सभी योनियों में सब से श्रेष्ठ मनुष्य योनी को कहा गया हे मनुष्य योनी का भी नाश होना निश्चित हे परन्तु मोक्ष इसी योनी द्वारा ही प्राप्त होना परमात्मा ने तय किया हे ?यहाँ बहुतबडी शंका उत्पन होती हे ,मोक्ष यदि मनुष्य योनी की प्राप्ति से ही होना हे तो इस योनी का सदुपयोग होना चाहिए न की युद्घ --क्योंकि यह भी सुनने में आता हे की ---बहुत ही अच्छे कर्म करने वाले को ही मनुष्य योनी प्राप्त होती हे ----फ़िर युद्घ रूपी कर्म द्वारा कई श्रेष्ठ कर्मो को कर के आए इन मनुष्यों को मार डालना कोनसीबुदि मानी हे ?यहाँ भगवान फ़िर आर्जुन को युद्घ करने कई ही सलाह क्यों दे रहे हें?....................................................अब्त्त्व ज्ञानियों ने इस तत्व कई खोग कई तो पाया कई वस्ती में भगवान द्वारा बताई गयी चोरासी लाख योनियाँ भी हें ---आपभी आनुभव करें अलग -अलग मनुष्यों को पड़ेंकुछ मनुष्यों का स्वभाव शालीनता लिए रहता हे ,वह बडी ही भद्र भाषा का प्रयोग करते हें क्यों कई मनुष्य-कई योनी से आए होते हे वह नित्य इसी प्रकार रहते हों कहना उचित नही होगा कभी न कभी अभद्रता पर वो भी उतरकर अपनी दूसरी योनी को भी प्रकट कर देते हें कारण नाश वान होना ही समझ में आता हे अन्य अध्ययनों में कुछ को क्रूर - हिंसक -निंदा के समर्थक -अहंक -कार से युक्त भी पाया जाता हे ---सभी में सदा इनको इकट्ठा नही देखा गया -एक के बाद दुसरे का परिवर्तन होताही हे कारण वही नाश -वांता इस लिए भी हे भरत वंशियों इस भवसागर रूपी महाभारत में तं उठो और इन से युद्घ करो जो इस आत्मा को मरने वाला समझ ता हे और इस को मरा मानता हे ,वह दोनों ही नही जानते क्यों कि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारती ही हे न किसी के द्वारा मरी ही जाती हे यह अभी ही नही जन्मती अर्थात अजन्मा हे नित्य हे, सनातन और पुरातन हे शरीर के मरे जाने पर भी यह नही मरती जो इतनी सी बात समझ जाता हे कि आत्मा नाश रहित ,नित्य,अजन्मा,अव्यय हे वो मनुष्य केसे किस को मरवाता हे और केसे किसी को मरता हे ?आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर दूसरा शरीर धारण कर लेती हे आत्मा को शस्त्र नही काट सकता- आग जला और जल गला नही सकती वायु सुखा नही सकती क्यों कि यह आत्मा नित्य,सर्वव्यापी ,अचल,स्थिर रहने वाली और सनातन हे <अद्याय २/२४ तक>

शनिवार, 8 अगस्त 2009

हम सब के लिए अर्जुन से कहते भगवान

भगवान ने अर्जुन से कहा तूं ऐसे मनुष्यों के लिए दुखी हो जो बिना भेद भाव सभी के साथ एक सा शुभ व्यवहार करते हों यो भी तब जब उन के प्राण चले गये हों ,आगर उन के प्राण नही गये हें तब उन के लिए दुखी होना या शोक करना कहाँ तक उचित हे नतो कभी तेरा -मेरा और इन राजा- प्रजाओं को कोई इस संसार से लुप्त कर सका हे जेसे जीवात्मा इस शरीर में शिशु अवस्था में प्रकट हो कर बालकपन -जवानी-बुडापा आदि अवस्था में उसी शरीर के बदल जाने पर भी नही बदलती उसी प्रकार हम सभी नही बदलने वाले हम सभी पहले भी थे आज भी हें और आगे भी रहें गे \इस विषय में विकार कर धीर परुष मोहित नही हुआ करते हे कुंती पुत्र --सुख -दुःख की उत्पति तो इन्द्रियों और विषयों के संयोग से हो ती हे इससे कोई अछुता नही रह सकता अतः इस का एक मात्र उप्पय यही हे किउन को तू सहन कर लेकारणयह हे कि श्रेष्ठ पुरूष सुख-दुःख को समान जाना करते हें इन्द्रियों ०र विषयों के संयोग उन को व्याकुल नही करते {वही पुरूष मोक्ष के अधिकारी होते हें }

आत्मा ----- राम

देह एक मन्दिर , जिस में आत्मा की मूर्ति । हृदय इस का स्थान हे , जिस में यह रहती । आत्मा न कभी मरती , ऐसा जाता हे कहा नित घुट-घुट कर मरती आत्मा को , आप ने देखा होगा फ़िर भी यह मरती नही , न कोई इसे मार सका न अग्नि जला सकी , न जल इसे गला ही सका एक देह को छोड़ , दूसरी में प्रवेश कर जाती यही आत्मा ,परमात्मा का अंश कहलाती जेसे तरल के रूप कई , जल पट्रोल मदिरा और दवाई सभी तरल ही कहलाते हें , इसी तरह आत्मा ही परमात्मा कहे जाते हें फ़िर भी लोग ,आश्चर्य से इसे देखते कोई भूतकहता इसे , कोई चुडेल या प्रेत भगवान कहते अर्जुन से , आत्मा परमात्मा का हे यही भेद ....................................................................................................

गुरुवार, 6 अगस्त 2009

श्री कृष्ण ने कहा

मन की हलचल भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दयालुता का परिचय इस प्रकार --------------------------------------- दिया जेसे बिजली का बटन दबाते ही पंखा चलने लग जाता हे---- sऋ कृष्ण ने बिना बात को इधर उधर घुमाये अर्जुन के प्रश्न का.ही उतर देना शुरू किया भगवान ने अर्जुन को बताया हे अर्जुन तूंशोक ग्रस्त क्यों हो गया हे ?भले-बुरे केसे लोगों के लिए शोक कर रहा हे तू किसी ऐसे मनुष्य के लिए शोक नही कर रहा जिस के लिए शोक किया जा सकता हो उल्टा पंडितों(विद्वानों)जेसी बातें कर रहा हे विद्वान -पंडित जन जो मर चुके हें या जिनके अभी प्राण नही छूटेहें ,विद्वान लोग उनका शोक नही किया करते ----------------------------------------------------------------------------------------------------- धर्म क्याहे ? बिना जाने । दी हवा धार्मिकता को धार्मिकता की बू को -------खसबू साबित करने की -----------नाकाम कोशिश भी की --------पर सचाई न चुप सकी ------ बनावट के उसूलों से -------क्या ख्श्बू कभी आई हे ---------कागज के फूलों से ------रब एक सच -----बाकि के जब --------इन दोनों को की लोग आजमा चुके हें --------रावण ,ह्र्नाक्श्य्प भी -----------नाशवान दुनिया से जा चुके--------कब तक इस स्काई से मुह छुपाओ गे -----मोट सच हे उसके भी दिन आयें गे ------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

मंगलवार, 4 अगस्त 2009

अंधे की आँख गीता ------------------------------------------ संजय उवाच -----------हे राजन निद्रा को जितने वाले अर्जुन अन्तर्यामी श्री कृष्ण महाराज को इस तरह के वचन कह कर फ़िर से भगवान से साफ -साफ कहते हें की में युद्घ नही करूं गा और फिर चुप हो जाते हें -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------। विचार योग कुछ बातें यहाँ उजागर होतीं हें यह प्रसंग दोनों सेनाओ के बीच शोकाग्रस्त अर्जुन -कृष्ण के मध्य उत्पन होता हे महा भारत का युद्घ तो सभी की जिन्दगी में उनके जीवन में चलता ही रहता हे भवसागर में रहते हुए इसे जीतना इस के पारउतरना किसी महा भारत से कम नही हे इस महा भारत में धर्म संकट खडा हे जो भवसागर में भी मोजूद हे अर्जुन का धर्म संकट अपनों से था अपनों की रक्षा ,अपनों से प्रेम पूर्वक व्यवहार ,अपनों से उन के ओहदे के अनुसार व्यवहार ,सामाजिक मर्यादा ,वगेरा-वगेरा ऐसे अनेकों धर्मों का जाल फेला हुआ था और अब भी हे अर्जुन यह जानते थे की आतताई को मर देने के धर्म की आज्ञाशास्त्रों में कही गई हे -परन्तु वही सब आतताई यहाँ अपने ही हें ऐसी स्थिति में अर्जुन उहो-पोह में फंस गये निकलने का कोई मार्ग भी नजर नही आता तब वह निश्चित रूप में अपनी हर को सामने देख व्याकुल हो उठते हें कोई साधन न समझ पाने की स्थिति में पहुंच कर अर्जुन श्री कृष्ण को अपना गुरु मान उन्ही से इस विषय पर ज्ञान प्राप्ति का भी अनुरोध करते हें भगवान इसे सहर्ष स्वीकार भी कर लेते हें
,मन को काबू करती गीता , अर्जुन बोले हे मधुसुदन में युद्घ के मैदान में हथियारों को ले करभीष्म-पितामह और द्रोणाचार्य से केसे लडूं यह दोनों ही पूजनीय हें पूजनीय के विरोध में कभी भी नही लडें अगर लड़ना ही हो तो उन के पक्ष में ही लड़ना चाहिए ऐसा ही धर्म शास्त्र भी कहते हें अतः अर्जुन भी कह देते हें की इनके विरोध में लड़ने से तो बेहतर यही होगा की भीख मांग कर जीवनयापन किया जाए इन दोनों में कोन सा साधन ठीक हे मुझे नही पता हे जीको मार कर हम जीना चाहते हें वह भी तो हमारे अपने ही हें मुझ में कायरता का दोष उत्पन हो रहा हे धर्म के विषय मे में भ्रमित सा होरहा हूँ -----------------------------------------में आप से पूछता हूँ की जो साधन निश्चित रूप मे कल्याण करने वालाहो यह मेरे लिए कहिये : क्यों की मे आपका शिष्य हूँ अपनी शरण मे रखते हुए मुझे शिक्षा दीजिये ---------------------------------------------------- अर्जुन इसी दुसरे अध्याये के ७ वें श्लोक मे श्री कृष्ण को अपना गुरु मान लेते हें और आग्रह करते हें की मुझे ज्ञान दें शिक्षा दें मुझे तो कहीं भी कोई ऐसा उपाय नही नजर आता जो मेरे इस दुःख का निवारण कर सके -------------------------------------------(दूसरा अध्याये अब श्री हरी बोलें गे )

मंगलवार, 28 जुलाई 2009

झूठ की सच से दोस्ती

झूठ और सच दोनों लगे खाने ,एक ही थाली में । वक्त का चक्का लडखडा गया इन दोनों की प्याली में । समय -असमय भी इकठे हो लिए । सत्य-असत्य की राह में । । ज्ञान यह सब देख घबरा गया । बदल सा गया ख़ुद अपने आपमें । कितने दोष लगे आने नजर अपने ही यारों में । अपने आप में झांक कर तो देखो माजरा ख़ुद समझ में आजे गा क्यों दिल बंट गया घरवाली और बाहरवाली में । स्वार्थ पने को त्यागने में आप भी अपना -अपना हिसा डालदो,मानव समाज के हित में । तुम पर दुनिया नाज करे गी अगर भरते हो तुम यह शक्ति अपने माली में ............................................................................................................................. ॥ । ............................अज्ञानता ....................................................................................... ॥ --------------------------------------------------------------------------------------------- अज्ञानता के सागर में लगा गोता धर्म गुरु जेहाद हे बोलता ... ॥ । .जिसे वो जेहाद बताता हे उस में दहशत गर्दी नंगा नाच -नाचती हे ॥ ॥ सारा जमाना यह जान चुका हे पुरी तरह पहिचान चुका हे ॥ ॥ । फिर क्यों ख़ुद को धोखा दे रहे हो हजारों सबूतों को क्यों ठुकरा रहे हो ॥ ॥ क्या तुम कहीं शेतान बन दुनिया को ख़ुद में खुदा तो नही बता रहे हो ?॥ ॥ क्या तुम कहीं भूल तो नही गये की इंसानों का एक ही खुदा होता हे ॥ ॥ जिस का महबूब तुम्हारे जेहाद से मरने वाला भी होता हे

रविवार, 26 जुलाई 2009

ज्ञान गुरु का ज्ञान भन्डार: भगवद्‌गीता

ज्ञान गुरु का ज्ञान भन्डार: भगवद्‌गीता

मनकी शान्ति गीता ,मन की चंचलता गीता ,मन की हलचल गीता ,मन को काबू करती गीता ,मनकी तृप्ति गीता ,सभी की मार्गदर्शक गीता ,तेरी मेरी गीता ,अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,चिन्तन -मनन का साधन गीता

युद्घ की तयारी या ज्ञान की बरी ?

श्री भगवानुवाच ---------हे अर्जुन तुझे बिना समय -असमय की पहिचान किए यह मोह क्यों हो गया हे की मेरे गुरु -मेरे नाती मेरे मित्र मेरे रिश्ते दारयहाँ विचार ने की बात यही हे की अर्जुन को ऐसे समय समय ऐसी उट पटांग बातो का ज्ञान हो जाता हे जिन का ज्ञान उसे बहुतहीपहले हो जाना चाहिए था इतना ही नही की उसे पता नही था की ईश्वर से प्राप्त सभी विषय विकारों को त्यागा नही जा सकता वह तो जनता था परन्तु यह सभी बातें उसे ऐसे समय में याद आतीं हें जब वो युद्घ के मैदान में आ चुका होता हे युद्घ के मैदान में आकर इन बातो का विकार करना उचित ही नही अनुचित ही हे भगवान यही कह रहे हें की न तो यह श्रेष्ठ लोगों द्वारा प्रयोग होना चाहिए और अगर वह ऐसे समय इसे अपना कर्तव्य मन लें तो इस कर्तव्य का फल अपयश ही होगा न कोई सुख ही हो गा जेसे राजाबदती महंगाई के समय यह तो सोचे की मेरी प्रजा को कम कीमत पर वस्तुएं प्राप्त हों और वह उस के चूल्हे-चोके की वस्तुओं के दामों को कम न करके हॉउस-लोन की व्याज दरों को कम करने लगे या टी.वी-फ्रिजों के दाम कम करने लगे आज अर्जुन की भी वही हालत हे युद्घ के क्षेत्र में वो रिश्ते नाते देख रहा हे ऐसे समय भगवान ने कहा की अर्जुन तू नपुंसक मत बन समय को पड़ते हुए युद्घ के लिए खडा हो जा (दुसरे अध्याये के प्रथम तीनश्लोक)

शनिवार, 18 जुलाई 2009

जरा विचार तो कर लें

मनकी शान्ति गीता ,से तभी प्राप्त हो पानी सम्भव हे यदि अत्यंत श्रद्धालु हो इस को सुने पूजा दो प्रकार की कही गयी हे (१) बाह्य-------------बाह्य पूजा के भी दो हिसे बताये गये हें ()वेदकी ()तांत्रिक इस के आगे वेदकी पूजा भी दो प्रकार की बताते हें मूर्ति भेद से वेद मन्त्रों से "वेदकी"तथा "मन्त्रों " से जो पूजा होती हे उसे "तांत्रीक "पूजा कहते हें ॐ अकछर से शुरू होने वाले सभी वाक्य मन्त्र कहें जाते हें पूजा के रहस्य को न समझ क्र जो अज्ञानी मानव उल्टे ढंग से पूजन में संलग्न होते हें <वह अपना और दूसरो का पतन ही करते हें>सर्व श्रेष्ठ परम प्रेरक पूजा इष्ट के रूप को नमन ध्यान और स्मरण करना चाहिए पूजा का यही एक मात्र रूप बताया गया हे तुम चित को शांत कर दम्भ अहंकार का त्याग कर उस परमात्मा के रूप की शरण जाओ चित द्वारा वही रूप दिख ता रहे जप ध्यान की कड़ी कभी न टूटे अनन्य प्रेम पूर्ण भगती से प्रभु के उपासक बन यज्ञों द्वारा तप दान द्वारा प्रभु को संतुष्ट करने का बारमबार प्रयास करते रहने का अभ्यास करते रहोप्रभु की प्रतिज्ञा हे की जो सदा मुझ पर निर्भर रहते हें और जिनका चित निरंतर मुझ में लगा रहता हे वे उतम भगत मने जाते हें में तुरंत उनको इस भव सागर से तार देता हूँफिर चंदा उगाह कर कोंन सी पूजा आज कल हो रही हे इश्वर ही जाने इसी तरह के बडे -बडे यग्य विश्व शान्ति के नाम पर किए जाते हें और नतीजा आशा के विपरीत ही आता हे क्यों जरा विचार तो करें ?

क्या झूठ क्या सच?

दुनिया जल्द ही समाप्ति को प्राप्त होने वाली हे ऐसी खबरें टी.वी .पर विज्ञानिकों और माया कलेंडर द्वारा समय समय पर कही जाती हें आइये देखें हमारे देवी पुराण में क्या लिखा हे ?कलयुग में सरस्वती;गंगा;विश्वपावनी (तुलसी)पॉँच हजार वर्षों तक रह कर बैकुंठ को चलीं जाएँ गी तीर्थों में काशी वृन्द्रावन के अतिरिक्त सभी तीर्थ श्री हरी की आज्ञा से उन देवियों सहित बैकुंठ चले जायें गे शालिग्राम;शिव ;शक्ति ;और भगवान प्रशोतम कली के दस हजार वर्ष पुरे होने पर भारत को छोड़ कर अपने स्थान को पधारें गे इसके साथ ही साधू ;पुराण ;शंख ;श्राध;तर्पण और वेदोक्त कर्म भी भारत से उठ जायें गे देव पूजा ;देव नाम; धर्म ग्राम देवता व्रत -तप-और उपवास भारत से लुप्त हो जायें गे ठीक ऐसा ही हो रहा हे गंगा का बहावथम गया काशी बिंद्राबन बन के अतिरिक्त प्रायः अमरनाथ -वेष्णोदेवी -गुरु द्वारे-चर्च -मस्जिद -मका आदि स्थानों पर ऐसी -ऐसीं अप्रिय घटनाएँ घटतीं हें जो इसी और इशारा करतीं हें मांस मदिरा के सेवन से भी लोग नही बच सकते क्यों की मिलावट का जमाना जो हे ;झूठ-कपट से किसी को डर नही ;परस्पर मेत्री का अभाव जननी -मर्द कही भेद बचा हे जाती भेद भी समाप्त हो चुका हे ;दुराचार प्रत्येक परिवार में हो गा पत्नियाँ -पतिको प्रताडित करें गी जितना नोकर नीच हो गा -मालिक उससे भी ज्यादा कमीना होगा जिस की लाठी उसी की भेंस वाली कहावत होगी पुरूष अपने ही परिवार वालों से बेगानों जेसा व्यवहार करने लगे गा चरों वर्ण अपने आचार-विचार छोड़ दें गे संध्या-वन्दना -संस्कार लुप्त हो जायें गे राजा लोगों का तेज अस्तित्व ही समाप्त हो जाए गा लाखों में एक भी पुण्यवान नही होगा ग्राम नगर जंगल के समान प्रतीत हों गे (जो अब २०२०से पूर्व ही होने को हे)भलीभांति जोते गये खेत में खेती नही होगी नीच वर्ण वाले धनी होने से श्रेष्ट मने जायें गे कलयुग में भगवान का नाम बेचा जाए गा (गुरु लोग यही कर रहे हें )मनुष्य अपनी कीर्ति बडाने को दान कर के वापिस लेलेगें -आदमी ओरत आपस में अवेध सम्बन्ध बनावेंगे अधिक क्या कहें चरों और मलेछ ही मलेछ हो जायें गे तब विष्णु यश नामक ब्रह्मिण के घर प्रभु अवतार लें गे और तिन रातों में ही धरती को मलेछ शून्य करदें गे इस के बाद फर अराजकता फेले गी लुट पाट होगी तब ६ दिन की मुसला धार वर्षा से ही धरती प्राणी -वृक्ष-ग्रह से शून्य हो जावे गी .अभी समय हे मनुष्य को भगवान की शरण के अतिरिक्त और कुछ भी धारण न करते हुए ख़ुद को बचाने का प्रयास करना चाहिए

शनिवार, 11 जुलाई 2009

जीवन में गीता (शिव - गीता)

श्री कृष्ण की भांति शिव गीता भी मनुष्य को आद्यात्मिक ज्ञान प्रदान करती हे गीता का मुख्य प्रयोजन मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुझाना हे मोक्ष ज्ञान से प्राप्त होता हे .ज्ञान हर प्राणी में हो ता हे जिस को गीता का ज्ञान प्रकाशत कर देता हे तत्व का ज्ञान गीता से ही जानने को मिलता हे श्रुति वाक्यों के अर्थों को जानना श्रवण और वेदन्त के अनुकूल युक्ति श्रवण चिन्तनका नाम मनन हे जो पुरूष में वेराग उत्पन करे उसी का नाम गीता कहा जा सकता हे
\ (शिव गीता प्रथम अध्याये )
सूत जी बोले शोंकदिकोइसके उपरांत में आपको शुद्ध केवल्य मुक्ति दायक संसार के दुःख छुडानेमें ओषधि रूप शिव गीता को शिवजी के अनुग्रह से वर्णन करता हून कर्मों के अनुष्ठान न दान न तप से मनुष्य मुक्ति को पता हे जब की मुक्ति ज्ञान से ही प्राप्त होती हे शिवजी ने दंड कवन में रामजी को सिव गीता का उपदेश दिया यह गुप्त से भी गुप्त हे इसके श्रवण मात्र से ही मनुष्य मुक्ति को प्राप्त हो जाता हे जिसे स्कन्द जी ने सनत्कुमार से कहा श्रेठ मुनि सनत्कुमार जी ने आगे ब्यास्जी को और व्यासजी ने हम सब पर कृपा करते हुए कहा और यह भी कहा था की तुम यह गीता किसी को मतदेना हे सूत पुत्र ऐसे वचनों का पालन न करने से देव क्रोधित हो शापित कर देते हें हे ब्रह्मिनो ,तब भगवान व्यास जी से पूछा सब देवता क्षोभित हो श्राफ क्यों देते हे उन का इस से क्या नुकसान होता हे अब व्यास जी ने बहुत ही सुंदर उतर दिया जो आज तक समझने में नही आया जो ब्रह्मिणनटी अग्नहोत्र करते और ग्रहस्थ में रहते हे वह सभी ग्रहस्थी देवताओं के लिए कामधेनु के समान हें खाने-पीने योग्य पदार्थों का जो दान पुन्य विधि विधान द्वारा किया जाता हे वह सब कुछ स्वर्ग में देवताओं को प्राप्त होता हे जिस से देवता ईष्ट कोप्रसन्न किया करते हें अर्थात स्वर्ग में देवताओं के पास ऐसा कुछ भी नही होता जिससे वह कोई कार्य प्रसन्नता पूर्वक करलें हम ग्रहस्थी देवताओं के लिए जो कुछ देते हें वो उन ko स्वर्ग me प्राप्त होता हे जब मनुष्य कोई दान-पुन्य नही करता तब उन ko कुछ भी प्राप्त नही होता ऐसा ग्रहस्थी ठीक वेसा hi होता हे जेसे किसी ग्र्ह्थी की गाये बहर चरने को जावे और कोई us को दोह ले घर खाली ही आजाये तब जो दुःख उस ग्रहस्थी को होता हे वेसा ही दुःख देवताओं ko भी होता हे इस प्रकार देवताओं को ज्ञान-वान ब्रह्मिण सदा दुःख ही देता हे तब देवता इसी विषय से उस ki पत्नी पुत्रादि में प्रवेश कर विघ्न पैदा करते हें देहधारी को चोकी लग जाती हे यदि नारी ko चोकी लगे तो कई निगाहें उसे घूरतीं हे मुर्ख प्राणी खुस हो ता हे की हमारे घर चोकी लगती हे वहतो भूल जाता he की यह कोई वरदान नही शाप he ---क्या किसी नारी को समूह का समूह घूरे कोईठीक बात हे ?ऐसों के साथ अच्छे बर्ताव का कोई नियम hi नही बनता खेर ऐसे मूर्खों को शिव का प्रसाद नसीब नही होता
रावण इस बात को जनता था की यदि स्वर्ग को जितना हे तो पहले स्वर्ग के लोगों को कमजोर करना होगा उस ने ऐसा किया जो-जो हवन -दान -पुन्य करते थे उनको मार -मार कर स्वर्गको पहुंचने वाली रसद को रोका फिर कमजोर देवतों को बंधी बना लिया नाभि में अमृत के रहते भी शिव का परशाद नही मिला अलग बात हुई की रावण भगवान राम की दृष्टि में भाई व्भिष्ण के वचनों द्वारा मर कर मोक्ष को प्राप्त हुआ हम लोगों पर यदि देवता नराज हो जाएँ तो मनुष्य मोक्ष केसे प्राप्त कर सकता हे अन्यथा नही इसी गीता में देवताओं के कोप से बचने का उपाए भी कहा गया हे -----------करोडों जन्मो के पुन्य संचय हो ने से भगवान में भगती प्त्प्न होती हे उस भगती से स्वार्थ की पूर्ति की कामना छोड़ कर जो मनुष्य भगवान में अर्पित भुधि से यथा विधि पूर्वक कर्म करता हे तब उन भगवान की कृपा से भगती में रत प्राणी कोंउक्सन पहुचाने वाले देवता भयभीत हो भाग जाते हें भगती करने से भगवान का चरित्र सुनने की अभिलाषा पैदा होती हे इसे सुनने से ज्ञान और ज्ञान से मुक्तिहो जाती हे ऐसे प्राणी को करोडों पापों से मुक्ति मिल जाती हे (पूजा पाठ ब्रह्मिण का धर्म हे तो भगती करने का अधिकारी हर जाती का प्राणी होता हे )























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रविवार, 14 जून 2009

अधाये २

मनकी शान्ति गीता ,मन की चंचलता गीता ,मन की हलचल गीता ,मन को काबू करती गीता ,मनकी तृप्ति गीता ,सभी की मार्गदर्शक गीता ,तेरी मेरी गीता ,अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,चिन्तन -मनन का साधन गीता aध्याये प्रारम्भ करने से पहले अर्जुन कृष्ण को कह रहे थे ,नही कमाना राज्य ऐसा जिसमे सने खून से हाथ हों ,अपनों को मारू नही भाता ,क्यों नही अछा इससे पकड़ कटोरा भीख मांग लेता /नही करना युद्घ मुझ को इस से बेहतर रण में मरना होगा |गांडीव त्याग जब बेठ गया अर्जुन तब कृष्ण ने मुह खोला -----------------------हे अर्जुन तुझे असमय में ऐसा मोह क्यों हुआ ?क्यों की तो श्रेष्ट पुरुषों द्वारा ऐसा होना चाहिये इससे तेरी कीर्ति होगी मिले गा स्वर्ग इस लिए मनकी कमजोरी को त्याग और युद्घ के लिए tyar हो /

शनिवार, 13 जून 2009

गिरिजेश राव

गिरिजेश राव जी जानना चाहते हें की मेने अडल्ट टेग क्यों लगा दिया हे ,गिरिजेश राव जी प्रभु की यही इछा थी |उन का कथन हे कि तुझे यह गीता रूप रहस्य कभी भी तप रहित ,भगती रहित और न सुनने कि इछा वालों तथा मुझ में दोष दृष्टि रखने वालों से तो इसे कभी भी नही कहना चाहिए (देखें अध्याये १८ का ६७ वां श्लोक ) अब आप ही बताएं मुझे क्या करना चाहिए था ?मेने अपने विवेक से ऐसा किया कि प्रभु आप कि इछा से जो क्लिक करे गा वही पडे गा |आप के पास कोई और विकल्प हो तो सुझायं -----धन्यवाद ------गीता

गुरुवार, 4 जून 2009

अर्जुन का कहा

अर्जुन द्वारा कही बातों को भी समझ ने की जरूरत हे अर्जुन का प्रश्न था कि अपने कुटुंब को मार कर केसे सुखी रह सकते हे ?और ख़ुद ही विचार भी करते हें लोभ -भ्रष्टचित हुए ये लोग ये लोग कुल के नाश उत्पन दोष और मित्र से विरोध करने में पाप को नही देखते (यही अभी हो रहा हे )कुल के नाश से उत्पन दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पाप से हट ने के लिए विचार क्यों नही कर न चाहिए ? आइये इसी पर पहले विचार किवा जाए ज्योतिष को वेदों का नेत्र कहा जाता हे ,वेदों के नेत्र का प्रयोग करने से पितृ दोष नजर में आता हे ,पत्र दोष में किसी ऐसे सम्बन्धी मित्र बन्धु-बांधव कि मृतु बाद प्राप्त जयेदाद जो उस के बाद हमे प्राप्त हो जाती हे भोगने से जो दोष आता हे ,इस दोष का उपचार जीव कि गति होने से ही होता हे जिस के लिए श्रद्धा पूर्वक श्राद्ध और तर्पण कि प्रचलित विद्धि हे दोह्स उत्पन होने पर परिवार कि वृधी रुक जाती हे (आज हम -दो ,हमारे दो पारिवारिक वृधी ख़ुद ही रुक रही हे ) भयंकर दोष तो भारत में आ ही चुका हे आगे अर्जुन ख़ुद ही इस का जवाब देते हे कुल के नाश से सनातन कुल-धर्म नष्ट हो जाते हे धर्म के नाश से सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत बड जाते हें पाप बड़ने से कुल कि जनानियां दूषित हो जाती हें इन के खराब होने से परिवारों में (दोगले बचे पैदा होते हें )वर्ण -संकरता उत्पन हो ती हे वर्ण संकर कुल घातियों(इन गुरुओं-जो पति परमेश्वर के अधिकारों से पति को वंचित कर ख़ुद उस के अधिकारों को भोगता हे )और ऐसे कुल को नर्क में ले जाने के लिए काफी होता हे श्राद्ध-पिंड दान आदि से वंचित पितृ लोग अधोगति को प्राप्त हो जाते हे फिर वही पितृ तंग करते हें हम ढोंगी बाबाओं के चक्र में पड़अपना आप नाश कर लेते हें जिस-जिस का कुल धर्म नष्ट हो गया हे ऐसे मनुष्यों का अनिश्चित काळ तक नरकों में वास होता हे ऐसा हम सुना करते हें इस तरह के कटू सत्य को जान अर्जुन युद्घ के मैदान को हार कर त्यागने का मन बनाते हे वह भूल जाते हे कि जो भगवान के रथ पर रहते हें भगवान उन्ही कि मदद करते हें दुसरे अध्याये से भगवान अपना मुह खोल अर्जुन कि इस जिज्ञासा को शांत ही नही करते बलिक दर्शन भी देते हें (गीता)
मनकी शान्ति गीता ,मन की चंचलता गीता ,मन की हलचल गीता ,मन को काबू करती गीता ,मनकी तृप्ति गीता ,सभी की मार्गदर्शक गीता ,तेरी मेरी गीता ,अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,चिन्तन -मनन का साधन गीता में अर्जुन रथ पर बैठ कृष्ण से कहते हे युद्घ क्षेत्र में दते हुए इन लोगों में गुरु जन ताऊ-चाचे लडके दादे मामे ससुर पुत्र साले और भी कई सगे-सम्बन्धी हे जिनको में मार कर जीतना नही चाहता आजभी लोग इस तरह की बातें सोच ना पसंद नही करते और ख़ुद को अर्जुन से भी बडा धर्मात्मा मानलेते हे जब की प्रति दिन जपते रह ते हे तुम्ही हो माता -पिता तुम्ही हो ,(आप मेरे माता -पिता हें )तुम्ही हो बन्धु सखा तम्ही हो (आप ही भाई-और मित्र भी हे )परन्तु व्यवहारिक रूप में इस सचाई को मानने को तयार नही होते अर्जुन ने भगवान कृष्ण को अपने माँ -पिता -बन्धु -सखा के समान ही माना हे आज इसी मानने के चकर में श्री कृष्ण को अर्जुन का सारथि बन मार्ग दर्शक {गुरु }बनने को मजबूर होना पडरहा हे वह बने भी हें आजके जिन लोगों को हम अपना गुरु बनाते हे वो लोग क्या कृष्ण के समान हे ?बुधि-विवेक -ज्ञान द्वारा यह आसानी से जाना जा सकता हे भगवान अपनों के लिए गोवर्धन को उठा लेते हें आज के गुरु ऐसा क्र्पने की मजबूरी जताएं गे और भगवान से प्रार्थना की बात कर ने लगते हे ,और चेला ठगा रह जाता हे उस की कोई नही सुनता न भगवान न कलयुगी गुरु तब चेले का कोन और क्यों बने न तो वह सनातन पुरूष का रहा न उस कलयुगी गुरु का न हिंदू ,न मुसलमान ,न सिख ,न इसाईभगवान का केसे रहा भगवान तो ख़ुद ही सनातन-पुरूष हे सनातन धर्म के संस्थापक हे कया भूले नही सुबह का भुला शाम को वापिस आजाए तो भुला नही कहलाता (इस पर आगे कही विचार किया जाए गा की शास्त्र ऐसों को क्या आज्ञा देते हे )

सोमवार, 1 जून 2009

मनकी शान्ति गीता ,मन की चंचलता गीता ,मन की हलचल गीता ,मन को काबू करती गीता ,मनकी तृप्ति गीता ,सभी की मार्गदर्शक गीता ,तेरी मेरी गीता ,अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,चिन्तन -मनन का साधन गीता?.........................? आइये अब गीता नामक इस ग्रन्थ को समझने का प्रयास करते हे ,प्रथम अध्याए में ४७ श्लोक हे जिनमे भगवान के मुखारविंद से एक भी श्लोक नही निकला हे सभी श्लोक संजय-और धृतराष्ट्र के ही हे इस पवित्र गीता शास्त्र का हिसा होने से हम इस को भगवान की आज्ञा तो नही मान सकते ठीक वेसे ही जेसे भगवान कृष्ण के मामा -कंस भगवान से बडे हो कर भी उनका पुजनिये हिसा होकर भी पूजने में नही आते पूजे भगवान ही जाते हे इस तरह यह नियम बनता हे की इन सबकी कही बाते सामाजिक लोग यदि न भी मानी जायें तो मनुष्य किसी भी प्रकार से शास्त्र आज्ञा या प्रभु -आज्ञा के उलंघन के दोष से मुक्त हो मुक्ति का अधिकारी होही जाता हे मुक्ति या मोक्ष के मार्ग को स्पष्ट-स्पष्ट दिखा ती गीता को यदि भगवान की वाणी को ही भगवान की आज्ञा मान कर चला जाए तो गीता का भाव ही बदल जाता हे सातवे श्लोक का अर्थ भी अपने आप में अजीब सा भाव दर्शाता हे हे ब्राह्मण श्रेष्ठ !अपने पक्ष में जो प्रधान हे,उनको आप समझ लीजिये !आश्चर्य चकित करता हे कोरव -पांडव ब्रह्मिण थे या क्षत्रिय थे क्या सम्पूर्ण ज्ञानी व्यक्ति ऊंट -घोडे के अंतर को नही जान सकता या उस युग में भी कलयुग की भांति समस्त जातियां गडमड हो गयी होंगी मुझे तो ऐसा ही प्रतीत होता हे !तब-और अब की परिस्थति में ऐसा क्या अंतर रहा हो गा जिसे जान भगवान को अवतार लेने को मजबूर होना पडा होगा यह भी बताती हे गीता !सब कुछ समझ में आने लगता हे यदि उन पात्रों के स्वरूपों की जान कारी हो जाए जिन को श्री कृष्ण ने महांभारत के इस भीषण संग्राम में मरवा या बचा लिया !

सोमवार, 25 मई 2009

संजय -बोले दुर्योधन ने व्यूह -रचना युक्त पांडवों की सेना को देख तथा गुरु द्रोणाचार्य के पास जा कर कहा |h आचार्य आपके बुधिमन शिष्य द्रुपद -पुत्र ध्रिष्ट्धुमन द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डु-पुत्रों की इस बडी भरी सेना को देखिये। । यहाँ

शनिवार, 23 मई 2009

धृत राष्ट्र बोले -हे संजय धर्म भूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित ,युद्घ की इछावाले मेरे और पांडु के पुत्रों ने क्या किया /////////////////////// ///////////////////////////////// यहाँ कुछ बातें पता चलतीं हे जेसे धर्म की भूमि अर्थात धर्म का छेत्र धर्म का छेत्र अत्यंत विशाल होता हे (पति-पत्नी का भाई -बहन का पिता-पुत्र का माँ-बेटे का भाई-भाई का गुरु -शिष्य का पडोसी का मित्र का भइया-भाबी का जीजा -साली का सास-ससुर का )अनेकों प्रकार के धर्मो को हम पवित्र पुस्तकों में अलग-अलग रूपों में पाते हे /शास्त्रों में स्वभावों तक के धर्मों का उलेख मिलता हे यहाँ तो अर्थात कुरुक्षेत्र में हर धर्म ही गड़-बड़ हो चुका हे तभी तो भगवान को अवतार ले कर धर्म की स्थापना करनी पडी जिस के लिए महा -भारत के युद्घ में अपने -अपने धर्म को छोड़ चुके कोरव-पांडु पुत्र युद्घ की इछा कर लड़ने -मरने को तयार हे इन दोनों धडों ने क्या किया हे संजय बताते हे

गीता की भी सुनलो

गीता भारत में ऐसी पवित्र धर्म पुस्तक हे जिस को कुछ विद्वानों ने अज्ञानता और निजी स्वार्थ को सामने रख कर काले अक्छरों में लिख दिया हे ,दुसरे विद्वानों ने इसे पड़ कर अन पड़ा कर दिया वास्तव में गीता ज्ञान का भंडार हे ,जितनी बार पड़ो नया ही भाव उत्पन होने लगता हे मेने जेसा इस के भावों को समझा या जाना यहाँ वेसा ही लिख दिया हे ,आप भी इस गीता शास्त्र का आनंद उठावें .................................................