सोमवार, 30 नवंबर 2009

अधुरा मन्दिर



क्या आपने ऐसा कोई प्राचीन अधूरा मंदिर देखा है जिसकी छत न हो और जिसमें किसी देवता की मूर्ति भी स्थापित न की गई हो। यदि नहीं तो आओ चलते हैं एक ऐसे ही मंदिर में।




इस मंदिर के बारे में कई तरह की किंवदंतियाँ है। जिनमें से दो किंवदंतियाँ ज्यादा प्रचलित है। इस मंदिर की दास्तान जुड़ी हुई है नेमावर के सिद्धनाथ मंदिर से। एक बार की बात है नेमावर के सिद्धेश्वर क्षेत्र में कौरव और पांडवों का रुकना हुआ।



एक शाम कुंती ने देखा की कौरवों ने इस क्षेत्र में एक भव्य मंदिर बनाया है तब उन्होंने पांडवों से कहा कि तुम भी इसी तरह का एक भव्य मंदिर बनाओ जिससे कौरवों के समक्ष हमारी प्रतिष्ठा बनी रहे और तुम्हारे पास इसे बनाने के लिए सिर्फ एक रात ही बची है।



उसी शाम कौरवों ने पांडवों से कहा की हमने इस क्षेत्र में एक मंदिर बनाया है। पांडवों ने कहा कि हमने भी इस क्षेत्र में एक मंदिर बनाया है। कौरवों ने कहा कि हमने तो आपको बनाते हुए देखा नहीं और यदि बनाया भी है तो हम पहले ही बता दे कि हमारा मंदिर पूर्वमुखी है और आपका?





NDपांडवों ने कहा कि हमारा पश्चिममुखी मंदिर है। इस पर कौरवों ने कहा कि ठीक है। तब तो हम कल सवेरे आपका मंदिर देखने चलेंगे।



पांडवों को अब यह चिंता सताने लगी कि आखिर रात भर में मंदिर कैसे बन पाएगा जबकि हमने कौरवों से झूठ कहा था कि हमने भी मंदिर बनाया है। ऐसे में भीम ने कहा कि आप चिंता न करें। भीम ने कुंती को वचन दिया की मैं रात भर में आपके कहे अनुसार मंदिर बना दूँगा।



रात्रि में भीम ने कौरवों के बनाए मंदिर के पास स्थित पहाड़ी पर मंदिर बनाने का कार्य आरंभ किया। लेकिन अर्ध रात्रि से ऊपर बीत जाने पर भी वह मंदिर नहीं बना पाए, तब उक्त मंदिर को अधूरा ही छोड़कर भीम ने जहाँ कौरवों ने मंदिर बनाया था उस उक्त पूर्वाभिमुखी मंदिर को घुमाते हुए पश्चिममुखी कर दिया।



दूसरी कहानी इस तरह की है कि कुंती ने भीम से कहा कि मेरे लिए एक रात में एक मंदिर बनाओ। यदि एक ही रात में नहीं बनता है तो हम यह स्थान छोड़ देंगे। भीम के लाख प्रयास के बाद भी जब मंदिर पर छत लगाने का काम शुरू किया तब भौर हो चुकी थी ऐसे में भीम ने मंदिर को बनाना छोड़ दिया। वचनानुसार ‍पांडवों ने कुंतीसहित उक्त स्थान को छोड़ दिया।

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