सनातन धर्म में भूतों का विशेष महत्व हे |गीता शास्त्र में भगवान क्ह्तेहे की बहुत प्रेत पिशाच जिन की हम बुरी या भली आत्मा के रूप में कल्पना करते हें ओर समाज में इन का
वर्चस्व भी देखा करते हें |वास्तव में वही आत्मा परमात्मा होती हे |परमात्मा का कहना हे की तुम मेरी ओर एक कदम चलो में तुम्हारी ओर चार कदम बडूगा |जब हम उस परमात्मा का चिन्तन खुदा यशु अकाल्पुर्ख या भूत प्रेत जिन पिशाच आदि के रूप में करते हैं तब परमात्मा उसी रूप में चार कदम हमारी ओर बड़ता हे , भगवान कृष्ण ने मिटटी खा कर माता के कहने पर अपना मुह खोल कर दिखाया तब माता को उन के मुह में बह्मांड नजर आया था |माता उन को पहिचान नही सकीं और उन पर किसी बला का साया समझ बैठीं |यदि यह उन को ब्रह्मांड का स्वामी मान लेतीं तो उन को तभी पता चल जाता की कृष्ण उन का पुत्र नही भगवान हेँ |इस के बाद श्री कृष्ण की लीलाएं किसी भूत प्रेत से कम नही थीं |हमारे शस्त्रों ने तो यहाँ तक कहा हे कि जेसा स्वरूप हम अपने मष्तिष्क में बनाते हेँ भगवान उसी रूप के हो जाते हैं |सागर का जल सागर नदी का जल नदी गिलास कटोरी का जल वैसा ही रूप धारण कर लेता हे भगवान भी जिस रूप में खोजे जाते है उसी रूप के होकर वैसे ही कर्म करने लगते हैं |अर्जुन भी भगवान का विराट रूप देख कर भयभीत हो उनसे शांत स्वरूप में दर्शन देने का आग्रह करते हैं |अतः प्रमाणित होता हे कि सदा शांत स्वरूप ही पूजने के योग्य होता हे |क्रोधित स्वरूपों की कल्पना मात्र क्रोध उत्पन कर उत्पात उत्पन करती हें |क्या यह खोज का वेज्ञानिक विषय नही हो सकता ?या ओझा तांत्रिकों का विषय अथवा दिमाग के डाक्टरों की कमाई का विषय मात्र इस लिए हो गया की सनातन धर्म को हम भूल गये हैं ?सनातन के मूल सिधान्तों का अनुसरण न करने से भूत प्रेत जिन के चक्र में दुखी होना स्वभाविक ही है |यदि हम देवता ही मान कर चलें तो भी देवता लोग किसी को नुक्सान नहीं पहुंचाते
(सनातन धर्म बेशक पुराना है पर प्रयोग नया है )
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nye pryog ki kdr nhi hogi mitr muft ke upaayon ko kon krtaahae aaj whi pryog kaa upaay kiyaa jaata hae jo mhngaa ho
जवाब देंहटाएंshi baat he gita
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