गुरुवार, 4 जून 2009

मनकी शान्ति गीता ,मन की चंचलता गीता ,मन की हलचल गीता ,मन को काबू करती गीता ,मनकी तृप्ति गीता ,सभी की मार्गदर्शक गीता ,तेरी मेरी गीता ,अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,चिन्तन -मनन का साधन गीता में अर्जुन रथ पर बैठ कृष्ण से कहते हे युद्घ क्षेत्र में दते हुए इन लोगों में गुरु जन ताऊ-चाचे लडके दादे मामे ससुर पुत्र साले और भी कई सगे-सम्बन्धी हे जिनको में मार कर जीतना नही चाहता आजभी लोग इस तरह की बातें सोच ना पसंद नही करते और ख़ुद को अर्जुन से भी बडा धर्मात्मा मानलेते हे जब की प्रति दिन जपते रह ते हे तुम्ही हो माता -पिता तुम्ही हो ,(आप मेरे माता -पिता हें )तुम्ही हो बन्धु सखा तम्ही हो (आप ही भाई-और मित्र भी हे )परन्तु व्यवहारिक रूप में इस सचाई को मानने को तयार नही होते अर्जुन ने भगवान कृष्ण को अपने माँ -पिता -बन्धु -सखा के समान ही माना हे आज इसी मानने के चकर में श्री कृष्ण को अर्जुन का सारथि बन मार्ग दर्शक {गुरु }बनने को मजबूर होना पडरहा हे वह बने भी हें आजके जिन लोगों को हम अपना गुरु बनाते हे वो लोग क्या कृष्ण के समान हे ?बुधि-विवेक -ज्ञान द्वारा यह आसानी से जाना जा सकता हे भगवान अपनों के लिए गोवर्धन को उठा लेते हें आज के गुरु ऐसा क्र्पने की मजबूरी जताएं गे और भगवान से प्रार्थना की बात कर ने लगते हे ,और चेला ठगा रह जाता हे उस की कोई नही सुनता न भगवान न कलयुगी गुरु तब चेले का कोन और क्यों बने न तो वह सनातन पुरूष का रहा न उस कलयुगी गुरु का न हिंदू ,न मुसलमान ,न सिख ,न इसाईभगवान का केसे रहा भगवान तो ख़ुद ही सनातन-पुरूष हे सनातन धर्म के संस्थापक हे कया भूले नही सुबह का भुला शाम को वापिस आजाए तो भुला नही कहलाता (इस पर आगे कही विचार किया जाए गा की शास्त्र ऐसों को क्या आज्ञा देते हे )

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