रविवार, 14 जून 2009

अधाये २

मनकी शान्ति गीता ,मन की चंचलता गीता ,मन की हलचल गीता ,मन को काबू करती गीता ,मनकी तृप्ति गीता ,सभी की मार्गदर्शक गीता ,तेरी मेरी गीता ,अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,चिन्तन -मनन का साधन गीता aध्याये प्रारम्भ करने से पहले अर्जुन कृष्ण को कह रहे थे ,नही कमाना राज्य ऐसा जिसमे सने खून से हाथ हों ,अपनों को मारू नही भाता ,क्यों नही अछा इससे पकड़ कटोरा भीख मांग लेता /नही करना युद्घ मुझ को इस से बेहतर रण में मरना होगा |गांडीव त्याग जब बेठ गया अर्जुन तब कृष्ण ने मुह खोला -----------------------हे अर्जुन तुझे असमय में ऐसा मोह क्यों हुआ ?क्यों की तो श्रेष्ट पुरुषों द्वारा ऐसा होना चाहिये इससे तेरी कीर्ति होगी मिले गा स्वर्ग इस लिए मनकी कमजोरी को त्याग और युद्घ के लिए tyar हो /

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