शनिवार, 11 जुलाई 2009

जीवन में गीता (शिव - गीता)

श्री कृष्ण की भांति शिव गीता भी मनुष्य को आद्यात्मिक ज्ञान प्रदान करती हे गीता का मुख्य प्रयोजन मोक्ष प्राप्ति का मार्ग सुझाना हे मोक्ष ज्ञान से प्राप्त होता हे .ज्ञान हर प्राणी में हो ता हे जिस को गीता का ज्ञान प्रकाशत कर देता हे तत्व का ज्ञान गीता से ही जानने को मिलता हे श्रुति वाक्यों के अर्थों को जानना श्रवण और वेदन्त के अनुकूल युक्ति श्रवण चिन्तनका नाम मनन हे जो पुरूष में वेराग उत्पन करे उसी का नाम गीता कहा जा सकता हे
\ (शिव गीता प्रथम अध्याये )
सूत जी बोले शोंकदिकोइसके उपरांत में आपको शुद्ध केवल्य मुक्ति दायक संसार के दुःख छुडानेमें ओषधि रूप शिव गीता को शिवजी के अनुग्रह से वर्णन करता हून कर्मों के अनुष्ठान न दान न तप से मनुष्य मुक्ति को पता हे जब की मुक्ति ज्ञान से ही प्राप्त होती हे शिवजी ने दंड कवन में रामजी को सिव गीता का उपदेश दिया यह गुप्त से भी गुप्त हे इसके श्रवण मात्र से ही मनुष्य मुक्ति को प्राप्त हो जाता हे जिसे स्कन्द जी ने सनत्कुमार से कहा श्रेठ मुनि सनत्कुमार जी ने आगे ब्यास्जी को और व्यासजी ने हम सब पर कृपा करते हुए कहा और यह भी कहा था की तुम यह गीता किसी को मतदेना हे सूत पुत्र ऐसे वचनों का पालन न करने से देव क्रोधित हो शापित कर देते हें हे ब्रह्मिनो ,तब भगवान व्यास जी से पूछा सब देवता क्षोभित हो श्राफ क्यों देते हे उन का इस से क्या नुकसान होता हे अब व्यास जी ने बहुत ही सुंदर उतर दिया जो आज तक समझने में नही आया जो ब्रह्मिणनटी अग्नहोत्र करते और ग्रहस्थ में रहते हे वह सभी ग्रहस्थी देवताओं के लिए कामधेनु के समान हें खाने-पीने योग्य पदार्थों का जो दान पुन्य विधि विधान द्वारा किया जाता हे वह सब कुछ स्वर्ग में देवताओं को प्राप्त होता हे जिस से देवता ईष्ट कोप्रसन्न किया करते हें अर्थात स्वर्ग में देवताओं के पास ऐसा कुछ भी नही होता जिससे वह कोई कार्य प्रसन्नता पूर्वक करलें हम ग्रहस्थी देवताओं के लिए जो कुछ देते हें वो उन ko स्वर्ग me प्राप्त होता हे जब मनुष्य कोई दान-पुन्य नही करता तब उन ko कुछ भी प्राप्त नही होता ऐसा ग्रहस्थी ठीक वेसा hi होता हे जेसे किसी ग्र्ह्थी की गाये बहर चरने को जावे और कोई us को दोह ले घर खाली ही आजाये तब जो दुःख उस ग्रहस्थी को होता हे वेसा ही दुःख देवताओं ko भी होता हे इस प्रकार देवताओं को ज्ञान-वान ब्रह्मिण सदा दुःख ही देता हे तब देवता इसी विषय से उस ki पत्नी पुत्रादि में प्रवेश कर विघ्न पैदा करते हें देहधारी को चोकी लग जाती हे यदि नारी ko चोकी लगे तो कई निगाहें उसे घूरतीं हे मुर्ख प्राणी खुस हो ता हे की हमारे घर चोकी लगती हे वहतो भूल जाता he की यह कोई वरदान नही शाप he ---क्या किसी नारी को समूह का समूह घूरे कोईठीक बात हे ?ऐसों के साथ अच्छे बर्ताव का कोई नियम hi नही बनता खेर ऐसे मूर्खों को शिव का प्रसाद नसीब नही होता
रावण इस बात को जनता था की यदि स्वर्ग को जितना हे तो पहले स्वर्ग के लोगों को कमजोर करना होगा उस ने ऐसा किया जो-जो हवन -दान -पुन्य करते थे उनको मार -मार कर स्वर्गको पहुंचने वाली रसद को रोका फिर कमजोर देवतों को बंधी बना लिया नाभि में अमृत के रहते भी शिव का परशाद नही मिला अलग बात हुई की रावण भगवान राम की दृष्टि में भाई व्भिष्ण के वचनों द्वारा मर कर मोक्ष को प्राप्त हुआ हम लोगों पर यदि देवता नराज हो जाएँ तो मनुष्य मोक्ष केसे प्राप्त कर सकता हे अन्यथा नही इसी गीता में देवताओं के कोप से बचने का उपाए भी कहा गया हे -----------करोडों जन्मो के पुन्य संचय हो ने से भगवान में भगती प्त्प्न होती हे उस भगती से स्वार्थ की पूर्ति की कामना छोड़ कर जो मनुष्य भगवान में अर्पित भुधि से यथा विधि पूर्वक कर्म करता हे तब उन भगवान की कृपा से भगती में रत प्राणी कोंउक्सन पहुचाने वाले देवता भयभीत हो भाग जाते हें भगती करने से भगवान का चरित्र सुनने की अभिलाषा पैदा होती हे इसे सुनने से ज्ञान और ज्ञान से मुक्तिहो जाती हे ऐसे प्राणी को करोडों पापों से मुक्ति मिल जाती हे (पूजा पाठ ब्रह्मिण का धर्म हे तो भगती करने का अधिकारी हर जाती का प्राणी होता हे )























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