रविवार, 26 जुलाई 2009

युद्घ की तयारी या ज्ञान की बरी ?

श्री भगवानुवाच ---------हे अर्जुन तुझे बिना समय -असमय की पहिचान किए यह मोह क्यों हो गया हे की मेरे गुरु -मेरे नाती मेरे मित्र मेरे रिश्ते दारयहाँ विचार ने की बात यही हे की अर्जुन को ऐसे समय समय ऐसी उट पटांग बातो का ज्ञान हो जाता हे जिन का ज्ञान उसे बहुतहीपहले हो जाना चाहिए था इतना ही नही की उसे पता नही था की ईश्वर से प्राप्त सभी विषय विकारों को त्यागा नही जा सकता वह तो जनता था परन्तु यह सभी बातें उसे ऐसे समय में याद आतीं हें जब वो युद्घ के मैदान में आ चुका होता हे युद्घ के मैदान में आकर इन बातो का विकार करना उचित ही नही अनुचित ही हे भगवान यही कह रहे हें की न तो यह श्रेष्ठ लोगों द्वारा प्रयोग होना चाहिए और अगर वह ऐसे समय इसे अपना कर्तव्य मन लें तो इस कर्तव्य का फल अपयश ही होगा न कोई सुख ही हो गा जेसे राजाबदती महंगाई के समय यह तो सोचे की मेरी प्रजा को कम कीमत पर वस्तुएं प्राप्त हों और वह उस के चूल्हे-चोके की वस्तुओं के दामों को कम न करके हॉउस-लोन की व्याज दरों को कम करने लगे या टी.वी-फ्रिजों के दाम कम करने लगे आज अर्जुन की भी वही हालत हे युद्घ के क्षेत्र में वो रिश्ते नाते देख रहा हे ऐसे समय भगवान ने कहा की अर्जुन तू नपुंसक मत बन समय को पड़ते हुए युद्घ के लिए खडा हो जा (दुसरे अध्याये के प्रथम तीनश्लोक)

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