शनिवार, 18 जुलाई 2009

जरा विचार तो कर लें

मनकी शान्ति गीता ,से तभी प्राप्त हो पानी सम्भव हे यदि अत्यंत श्रद्धालु हो इस को सुने पूजा दो प्रकार की कही गयी हे (१) बाह्य-------------बाह्य पूजा के भी दो हिसे बताये गये हें ()वेदकी ()तांत्रिक इस के आगे वेदकी पूजा भी दो प्रकार की बताते हें मूर्ति भेद से वेद मन्त्रों से "वेदकी"तथा "मन्त्रों " से जो पूजा होती हे उसे "तांत्रीक "पूजा कहते हें ॐ अकछर से शुरू होने वाले सभी वाक्य मन्त्र कहें जाते हें पूजा के रहस्य को न समझ क्र जो अज्ञानी मानव उल्टे ढंग से पूजन में संलग्न होते हें <वह अपना और दूसरो का पतन ही करते हें>सर्व श्रेष्ठ परम प्रेरक पूजा इष्ट के रूप को नमन ध्यान और स्मरण करना चाहिए पूजा का यही एक मात्र रूप बताया गया हे तुम चित को शांत कर दम्भ अहंकार का त्याग कर उस परमात्मा के रूप की शरण जाओ चित द्वारा वही रूप दिख ता रहे जप ध्यान की कड़ी कभी न टूटे अनन्य प्रेम पूर्ण भगती से प्रभु के उपासक बन यज्ञों द्वारा तप दान द्वारा प्रभु को संतुष्ट करने का बारमबार प्रयास करते रहने का अभ्यास करते रहोप्रभु की प्रतिज्ञा हे की जो सदा मुझ पर निर्भर रहते हें और जिनका चित निरंतर मुझ में लगा रहता हे वे उतम भगत मने जाते हें में तुरंत उनको इस भव सागर से तार देता हूँफिर चंदा उगाह कर कोंन सी पूजा आज कल हो रही हे इश्वर ही जाने इसी तरह के बडे -बडे यग्य विश्व शान्ति के नाम पर किए जाते हें और नतीजा आशा के विपरीत ही आता हे क्यों जरा विचार तो करें ?

1 टिप्पणी:

  1. mene baibl me khi pda tha ki jo bda he use ishwr ke ghr chota mana jata he .prntu logon karujhan bde bde ygy bhndare krwane me adhik kyon he kh nhi skta .mene apne dhrm grnthon me yh bhi pda he ki ashwmegh jese bhut bdebde ygy bhi smpurn hone kthn the kya aap kbhi is pr koi prkash dalege ?jo apna sbkuch tyag kr prmeshwr ki shrn aajata he prmeshwr uska sara bhar uda lete hen phir use koiany krm krne ki aawshyktahi khan rhjati he jra is pr bhi wichr kren|likha to aapne whi he jo pwitr pustkon me likha he kipya apna koi anubhw bhi likh diya kren bat ki prustti me jan aajae gi

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