शनिवार, 5 दिसंबर 2009

संत तरुण सागर जी महाराज

प्रख्यात जैन संत तरूण सागर ने कहा है कि धर्मग्रंथ गीता किसी एक धर्म की जागीर नहीं है और न ही उस पर हिंदुओं का एकाधिकार है। मुनिश्री तरूण सागर ने पत्रकारों से बातचीत में कल रायपुर में यह उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि गीता में कहीं भी हिंदू का उल्लेख नहीं है। गीता पर सबका अधिकार है।




उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द को जरूरी बताते हुए कहा कि हिंदू और मुसलमान देश की दो आँखें हैं। भारत में सांप्रदायिकता मुल्क के हिसाब से नहीं है। रमजान लिखते हैं तो राम से शुरुआत करते हैं दिवाली लिखते हैं अली से खत्म करते हैं।



उन्होंने कहा सत्ता और भ्रष्टाचार का करीबी रिश्ता है। सत्ता और राजनीति को काजल की कोठरी करार देते हुए कहा कि इस पर अगर कोई घुसे और बेदाग निकल जाए यह संभव नहीं है, लेकिन जो बेदाग निकलते हैं उन्हें प्रणाम करना चाहिए। राजनीति में जो ईमानदार लोग भी हैं उनमें साहस नहीं है। ईमानदारी के साथ-साथ साहसी भी होना जरूरी है, बुराइयों के खिलाफ लड़ने का साहस होना चाहिए।






जीवन जीने के दो तरीके बताते हुए मुनिश्री ने कहा कि पहला जो चल रहा है उसके साथ चलना। दूसरा जो हो रहा है उसके विपरीत चलना। प्रवाह के विरोध के लिए ऊर्जा चाहिए। गंगोत्री की गंगासागर से यात्रा मुर्दा भी कर लेता है, लेकिन गंगासागर से गंगोत्री की यात्रा करने के लिए साहस चाहिए। प्रवाह के विरुद्ध बहने के लिए साहस जरूरी है। सामाजिक-वैश्विक समस्याओं से निपटने के लिए साहस चाहिए।



जैन सन्त ने एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि आज देश में गाय धर्मनीति और राजनीति के बीच पीस रही है। जब तक इन्हें इन बँधनों से मुक्त नहीं करेंगे गौरक्षा असंभव है। गौरक्षा को धर्मनीति और राजनीति से निकालकर अर्थनीति से जोड़ना होगा तभी गौरक्षा आंदोलन सफल होगा। उन्होंने एक अन्य प्रश्न के उत्तर में कहा कि जैन धर्म के सिद्धांत दुनिया को सुधारने के लिए उपयोगी है अच्छे हैं, लेकिन उसकी मार्केटिंग नहीं हो पा रही है इसलिए पिछड़ रहा है।



धर्म और राजनीति के संबंध में उन्होंने कहा कि धर्म गुरु है और राजनीति शिष्य। राजनीति अगर गुरु के समक्ष आती है तो यह समस्या खड़ी हो जाती है। अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के संबंध में पूछे गए सवाल पर संतश्री ने कहा कि वहाँ हजारों लाखों लोगों की आस्था टिकी हुई है इसलिए कानून के दायरे में रहकर मंदिर निर्माण का काम होना चाहिए। धर्म को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि धर्म परिवर्तन का नाम है। यह बेचने-खरीदने की चीज नहीं है। धर्म जीने की चीज है प्रदर्शन का नहीं।

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