रविवार, 27 दिसंबर 2009

गीता

मनकी शान्ति गीता ,मन की चंचलता गीता ,मन की हलचल गीता ,मन को काबू करती गीता ,मनकी तृप्ति गीता ,सभी की मार्गदर्शक गीता ,तेरी मेरी गीता ,अंधे की आँख गीता ,बुडे -बचे -जवान का सहारा गीता , हर इन्सान की रक्षक गीता ,चिन्तन -मनन का साधन गीत
गीता उपदेश जीवन की धारा है। चूंकि गीता में जीवन की सच्चाई छिपी है और इसमें जीवन में आने वाली दुश्वारियों के कारण व निवारण दोनों को ही विस्तार से समझाया गया है। इसलिए गीता के उपदेश विश्व भर में प्रसिद्ध है और हर वर्ग को प्रभावित करते हैं।







उन्होंने उदाहरण देकर समझाते हुए कहा कि गीता डाक्टर की भांति है। बस फर्क इतना ही है कि डाक्टर शरीर के रोगों का इलाज करता है जबकि गीता मन के रोगों का इलाज करती है और उन्हें दूर करने का मार्ग दिखाती है। जिस प्रकार डाक्टर रोगी को रोग के निवारण के साथ-साथ उसके कारण भी बताता है। ठीक उसी प्रकार से गीता का अगर गहनता से अध्ययन किया जाए तो इससे मन के रोगों का कारण और निवारण दोनों का पता चल जाता है।






गीता मन के रोगों को दूर करने का एक सशक्त माध्यम है। गीता ज्ञान से मानव जीवन में मोह को भी आसानी से दूर किया जा सकता है। मोह जीवन लीला को धीरे-धीरे नष्ट कर देता है। जीवन में दुखों का सबसे बडा कारण मोह ही है। जीवन को अगर सफल बनाना है और मोह से मुक्ति पानी है तो गीता की शरण में जाना पडेगा। गीता से ज्ञान पाकर मानव मोक्ष को प्राप्त कर सकता है।






गीता का ज्ञान मनुष्य को उसकी आत्मा के अमर होने के विषय में बोध करवा कर अपने कर्तव्य कर्म को पूर्ण निष्ठा से करने को प्रेरित करता है। भगवान ने मनुष्य को देह केवल भोग के लिए प्रदान नहीं की है अपितु हमें इसका उपयोग मोक्ष प्राप्ति के लिए करना चाहिए। इसके लिए हमें भजन, सत्संग, समाज सेवा व जन कल्याण के कार्य करने चाहिए।






उन्होंने कहा कि साधु व नदी कभी एक स्थान पर नहीं रुकते और निरंतर आगे बढते हुए विभिन्न स्थानों पर जन-जन के हृदयों में अपने ज्ञान व भक्ति के प्रभाव से उन्हें लाभान्वित व आनंदित करते हैं। प्रत्येक मानव को पूरी श्रद्धा व निष्ठा से परोपकार के लिए तैयार रहना चाहिए और अपने ज्ञान से जगत को प्रकाशमान करने का प्रयास करते रहना चाहिए, असल में यही मानव धर्म है।

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