मंगलवार, 4 अगस्त 2009

अंधे की आँख गीता ------------------------------------------ संजय उवाच -----------हे राजन निद्रा को जितने वाले अर्जुन अन्तर्यामी श्री कृष्ण महाराज को इस तरह के वचन कह कर फ़िर से भगवान से साफ -साफ कहते हें की में युद्घ नही करूं गा और फिर चुप हो जाते हें -------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------। विचार योग कुछ बातें यहाँ उजागर होतीं हें यह प्रसंग दोनों सेनाओ के बीच शोकाग्रस्त अर्जुन -कृष्ण के मध्य उत्पन होता हे महा भारत का युद्घ तो सभी की जिन्दगी में उनके जीवन में चलता ही रहता हे भवसागर में रहते हुए इसे जीतना इस के पारउतरना किसी महा भारत से कम नही हे इस महा भारत में धर्म संकट खडा हे जो भवसागर में भी मोजूद हे अर्जुन का धर्म संकट अपनों से था अपनों की रक्षा ,अपनों से प्रेम पूर्वक व्यवहार ,अपनों से उन के ओहदे के अनुसार व्यवहार ,सामाजिक मर्यादा ,वगेरा-वगेरा ऐसे अनेकों धर्मों का जाल फेला हुआ था और अब भी हे अर्जुन यह जानते थे की आतताई को मर देने के धर्म की आज्ञाशास्त्रों में कही गई हे -परन्तु वही सब आतताई यहाँ अपने ही हें ऐसी स्थिति में अर्जुन उहो-पोह में फंस गये निकलने का कोई मार्ग भी नजर नही आता तब वह निश्चित रूप में अपनी हर को सामने देख व्याकुल हो उठते हें कोई साधन न समझ पाने की स्थिति में पहुंच कर अर्जुन श्री कृष्ण को अपना गुरु मान उन्ही से इस विषय पर ज्ञान प्राप्ति का भी अनुरोध करते हें भगवान इसे सहर्ष स्वीकार भी कर लेते हें

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