मंगलवार, 4 अगस्त 2009

,मन को काबू करती गीता , अर्जुन बोले हे मधुसुदन में युद्घ के मैदान में हथियारों को ले करभीष्म-पितामह और द्रोणाचार्य से केसे लडूं यह दोनों ही पूजनीय हें पूजनीय के विरोध में कभी भी नही लडें अगर लड़ना ही हो तो उन के पक्ष में ही लड़ना चाहिए ऐसा ही धर्म शास्त्र भी कहते हें अतः अर्जुन भी कह देते हें की इनके विरोध में लड़ने से तो बेहतर यही होगा की भीख मांग कर जीवनयापन किया जाए इन दोनों में कोन सा साधन ठीक हे मुझे नही पता हे जीको मार कर हम जीना चाहते हें वह भी तो हमारे अपने ही हें मुझ में कायरता का दोष उत्पन हो रहा हे धर्म के विषय मे में भ्रमित सा होरहा हूँ -----------------------------------------में आप से पूछता हूँ की जो साधन निश्चित रूप मे कल्याण करने वालाहो यह मेरे लिए कहिये : क्यों की मे आपका शिष्य हूँ अपनी शरण मे रखते हुए मुझे शिक्षा दीजिये ---------------------------------------------------- अर्जुन इसी दुसरे अध्याये के ७ वें श्लोक मे श्री कृष्ण को अपना गुरु मान लेते हें और आग्रह करते हें की मुझे ज्ञान दें शिक्षा दें मुझे तो कहीं भी कोई ऐसा उपाय नही नजर आता जो मेरे इस दुःख का निवारण कर सके -------------------------------------------(दूसरा अध्याये अब श्री हरी बोलें गे )

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