शनिवार, 8 अगस्त 2009
हम सब के लिए अर्जुन से कहते भगवान
भगवान ने अर्जुन से कहा तूं ऐसे मनुष्यों के लिए दुखी हो जो बिना भेद भाव सभी के साथ एक सा शुभ व्यवहार करते हों यो भी तब जब उन के प्राण चले गये हों ,आगर उन के प्राण नही गये हें तब उन के लिए दुखी होना या शोक करना कहाँ तक उचित हे नतो कभी तेरा -मेरा और इन राजा- प्रजाओं को कोई इस संसार से लुप्त कर सका हे जेसे जीवात्मा इस शरीर में शिशु अवस्था में प्रकट हो कर बालकपन -जवानी-बुडापा आदि अवस्था में उसी शरीर के बदल जाने पर भी नही बदलती उसी प्रकार हम सभी नही बदलने वाले हम सभी पहले भी थे आज भी हें और आगे भी रहें गे \इस विषय में विकार कर धीर परुष मोहित नही हुआ करते हे कुंती पुत्र --सुख -दुःख की उत्पति तो इन्द्रियों और विषयों के संयोग से हो ती हे इससे कोई अछुता नही रह सकता अतः इस का एक मात्र उप्पय यही हे किउन को तू सहन कर लेकारणयह हे कि श्रेष्ठ पुरूष सुख-दुःख को समान जाना करते हें इन्द्रियों ०र विषयों के संयोग उन को व्याकुल नही करते {वही पुरूष मोक्ष के अधिकारी होते हें }
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