यह आत्मा अव्यक्त हे, यह आत्मा अचिन्त्य और विकार रहित हे अगर इस प्रकार से ही आत्मा को जाना जावे तोभी शोक करना उचित नही हेकिंतु अगर तू आत्मा को सदा जन्म लेने वाली मन कर चलता हे ,तोभी तुझे शोक करना उचित नही हे क्यों की इस मान्यता के अनुसार जन्मे की मृत्यु निश्चित हे फ़िर बे सिर-पैर की बातों का शोक केसा ? हे अर्जुन जन्म से पहले सभी प्राणी आदृश्य थे ,मरने के बाद भी आदृश्य होजाएंगे फ़िर शोक किस बात का ?कोई एक महा पुरुषही इस आत्मा को आश्चर्य की भांति देखता हे और दूसरा इस के तत्व का आश्चर्य से वर्णन करता हे दूसरा जो इसे जानने का असली अधिकारी पुरूष भी इसे आश्चर्य की भांति सुनता हे की ऐसे भी होते हें जिन के पले कुछ भी नही पड़ता
हे अर्जुन यह आत्मा सभी के शरीर में सदा ही रहती हे और यह किसी के द्वारा मरी भी नही जा सकती इस कारण से भी सभी प्राणियों <हाथी-जानवर-मनुष्य-वगेरा-वगेरा >के लिए भी शोक करना नही बनता और अपने क्षत्रिय धर्म को मान कर भी भयभीत होना भी शोभा नही देता क्यों की क्षत्रिय के लिए {ब्रह्मिणको पठन -पाठन वेश्य को उद्योग व्योपार ,और शुद्र को सेवा }धर्म-युक्त कर्म से बडा कल्याण कारी कर्तव्य और क्या हो सकता हे ?
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सुन्दर। आत्मकल्याण की बाते।
जवाब देंहटाएंआभार
मुम्बई टाईगर
gyan wrdhk lekh ke liye dhnywad
जवाब देंहटाएंmn bhaawn
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