सोमवार, 10 अगस्त 2009

तत्व ------ज्ञान

झूठ के पांव नही होते सत्य की कोई काट नही होती एक झूठ को सचा साबित करने के लिए छतीस -प्रकार के झूठों का सहारा लेना पड़ता हे सत्य को साबित करने के लिए किसी प्रपंच की जरूरत नही होती इसी प्रकर या सिधांत का अनुसरण तत्व ज्ञानी पुरुषों द्वारा किया जाता हे --------------------------------------------------{१}...........नाश रहित , जिस का किसी भी कल में नाश नही होता --------जिस के द्वारा यह सम्पूर्ण संसार दिखाई देता हे इस अविनाशी का विनाश करने में कोई भी समर्थ नही हे ........जेसे इस शरीर में रहने वाली आत्मा का नाश नही होता परन्तु चोरासी लाख योनियों का नाश हो ता देखने वाली यह आत्मा अविनाशी हे इसका कभी भी नाश नही होता हे और इन्ही सभी योनियों में सब से श्रेष्ठ मनुष्य योनी को कहा गया हे मनुष्य योनी का भी नाश होना निश्चित हे परन्तु मोक्ष इसी योनी द्वारा ही प्राप्त होना परमात्मा ने तय किया हे ?यहाँ बहुतबडी शंका उत्पन होती हे ,मोक्ष यदि मनुष्य योनी की प्राप्ति से ही होना हे तो इस योनी का सदुपयोग होना चाहिए न की युद्घ --क्योंकि यह भी सुनने में आता हे की ---बहुत ही अच्छे कर्म करने वाले को ही मनुष्य योनी प्राप्त होती हे ----फ़िर युद्घ रूपी कर्म द्वारा कई श्रेष्ठ कर्मो को कर के आए इन मनुष्यों को मार डालना कोनसीबुदि मानी हे ?यहाँ भगवान फ़िर आर्जुन को युद्घ करने कई ही सलाह क्यों दे रहे हें?....................................................अब्त्त्व ज्ञानियों ने इस तत्व कई खोग कई तो पाया कई वस्ती में भगवान द्वारा बताई गयी चोरासी लाख योनियाँ भी हें ---आपभी आनुभव करें अलग -अलग मनुष्यों को पड़ेंकुछ मनुष्यों का स्वभाव शालीनता लिए रहता हे ,वह बडी ही भद्र भाषा का प्रयोग करते हें क्यों कई मनुष्य-कई योनी से आए होते हे वह नित्य इसी प्रकार रहते हों कहना उचित नही होगा कभी न कभी अभद्रता पर वो भी उतरकर अपनी दूसरी योनी को भी प्रकट कर देते हें कारण नाश वान होना ही समझ में आता हे अन्य अध्ययनों में कुछ को क्रूर - हिंसक -निंदा के समर्थक -अहंक -कार से युक्त भी पाया जाता हे ---सभी में सदा इनको इकट्ठा नही देखा गया -एक के बाद दुसरे का परिवर्तन होताही हे कारण वही नाश -वांता इस लिए भी हे भरत वंशियों इस भवसागर रूपी महाभारत में तं उठो और इन से युद्घ करो जो इस आत्मा को मरने वाला समझ ता हे और इस को मरा मानता हे ,वह दोनों ही नही जानते क्यों कि यह आत्मा वास्तव में न तो किसी को मारती ही हे न किसी के द्वारा मरी ही जाती हे यह अभी ही नही जन्मती अर्थात अजन्मा हे नित्य हे, सनातन और पुरातन हे शरीर के मरे जाने पर भी यह नही मरती जो इतनी सी बात समझ जाता हे कि आत्मा नाश रहित ,नित्य,अजन्मा,अव्यय हे वो मनुष्य केसे किस को मरवाता हे और केसे किसी को मरता हे ?आत्मा पुराने शरीर को त्याग कर दूसरा शरीर धारण कर लेती हे आत्मा को शस्त्र नही काट सकता- आग जला और जल गला नही सकती वायु सुखा नही सकती क्यों कि यह आत्मा नित्य,सर्वव्यापी ,अचल,स्थिर रहने वाली और सनातन हे <अद्याय २/२४ तक>

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